हाई कोर्ट: आरोपी किसी तीसरे पक्ष को आपराधिक कार्यवाही में प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त नहीं कर सकता है, जैसे कि पावर ऑफ अटॉर्नी धारक-

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दिल्ली हाई कोर्ट ने निर्णय दिया है कि आरोपी किसी तीसरे पक्ष को आपराधिक कार्यवाही में प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त नहीं कर सकता है, जैसे कि पावर ऑफ अटॉर्नी धारक। न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर ने कहा कि आपराधिक मामलों में तीसरे पक्ष की उपस्थिति आपराधिक न्याय प्रणाली के उद्देश्य को विफल कर देगी, क्रिमिनल प्रक्रिया … Read more

सुप्रीम कोर्ट: उच्च न्यायालय के पास शक्तियां हैं, परंतु बरी करने के फैसले को दोषसिद्धि में नहीं बदल सकता-

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Supreme Court of India सुप्रीम कोर्ट मद्रास उच्च न्यायालय Madras High Court के एक आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसे दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की धारा 401 के तहत अपने पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा पारित बरी करने के आदेश को … Read more

इलाहाबाद हाई कोर्ट: जो व्यक्ति पुलिस जांच से पीड़ित है वह जांच की निगरानी के लिए मजिस्ट्रेट के पास जा सकता है- 

इलाहाबाद हाई कोर्ट

न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ एक आपराधिक मामले में निष्पक्ष जांच करने के लिए प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देश देने की मांग वाली एक याचिका पर फैसला सुना रही थी। Allahabad High Court इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में देखा है कि एक मजिस्ट्रेट के पास आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) … Read more

आपराधिक मामलों के संदर्भ में सर्वाधिक प्रचलित शब्द ज़मानत Bail है, जानिए क्या है “जमानत” का कानून!

दंड प्रक्रिया संहिता 1973

आपराधिक मामलों के संदर्भ में सर्वाधिक प्रचलित शब्द ज़मानत होता है। जब भी कोई व्यक्ति किसी प्रकरण में अभियुक्त बनाया जाता है और अन्वेषण (Investigation), जांच (Inquiry) और विचारण (Trial) के लंबित रहते हुए उस व्यक्ति को कारावास में रखा जाता है तब ज़मानत शब्द, उस अभियुक्त के लिए सबसे अधिक उपयोग में लाया जाता … Read more

अभियुक्त के पास अगर नहीं है ज़मानतदार तब कानून में क्या है प्रावधान, जानिए विस्तार से केस विवरण के साथ –

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ज़मानत के लिए गिड़गिड़ाना तथा किसी व्यक्ति से अपने प्रकरण में प्रतिभू बनने हेतु निवेदन करना अपनी गरिमा एवं प्रतिष्ठा को ठेंस पहुंचाने जैसा है। यह गरिमा एवं प्रतिष्ठा किसी व्यक्ति को संविधान के अंतर्गत दिए गए मूल अधिकारों में निहित है। संपूर्ण भारत में कोई अभियुक्त (Accused) किसी अन्य स्थान पर निवास करता है … Read more

सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला: चार्जशीट दायर करने के बाद भी रद्द हो सकती है FIR-

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पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट एफआईआर रद्द करने की याचिका को सुन सकता था। यहां तक कि इस याचिका के लंबित रहते यदि चार्जशीट दायर भी हो गई है तो भी इसे सुना जा सकता है।  सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि चार्जशीट दायर होने के बाद भी आरोपी एफआईआर … Read more

I.P.C., Cr.P.C. और Evidence Act में संशोधन प्रक्रिया शुरू, गृह विभाग ने राज्यों से माँगे सुझाव-

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तिरुपति में दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद की 29 वीं बैठक के दौरान शाह ने कहा कि राज्यों को अधिकारियों और विशेषज्ञों को शामिल करके संशोधन के लिए अपने इनपुट भेजना चाहिए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को इस बात पर जोर दिया कि केंद्र ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code), आपराधिक प्रक्रिया संहिता … Read more

CrPC sec 125 ”एक पिता की अपने बेटे को भरण-पोषण देने की बाध्यता उसके बालिग होने पर भी समाप्त नहीं होगी”-उच्च न्यायलय

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सुप्रीम कोर्ट ने लगातार यह माना है कि धारा 125 की अवधारणा एक महिला की वित्तीय पीड़ा को कम करने के लिए थी, जिसने अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया था; यह बच्चों के साथ, यदि कोई हो, महिला के भरण-पोषण को सुरक्षित करने का एक साधन है- न्यायमूर्ति सुब्रमोनियम प्रसाद ने यह व्यक्त करते हुए … Read more

क्या वास्तव में सरकार या सत्ता में काबिज कोई व्यक्ति विशेष : मुकदमे / अभियोजन को वापस ले सकता हैं?

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हम यहाँ यह साफ़ कर देना चाहते हैं कि राज्य सरकार की तरफ से मुकदमा वापस लिए जाने का फैसला, इस बात की गारंटी नहीं होती की मुकदमा अदालत से वापस ले ही लिया जायेगा. इस महत्वपूर्ण बिंदु को हम आगे लेख में समझेंगे- हालांकि, सरकारों के लिए मामले वापस लेना नियम नहीं है, लेकिन … Read more