सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी वकील को उसके मुवक्किल को दी गई कानूनी सलाह के लिए समन नहीं भेजा जा सकता, जब तक कि वह मामला Section 132 Bhartiya Sakshya Adhiniyam के अपवादों में न आता हो। यह फैसला वकीलों की स्वतंत्रता और गोपनीयता की रक्षा के लिए ऐतिहासिक माना जा रहा है।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: “कानूनी सलाह देने पर वकीलों को नहीं भेजा जा सकता समन”, Section 132 BSA के तहत मिलेगा संरक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी वकील को उसके द्वारा दी गई कानूनी सलाह (Legal Advice) के आधार पर समन नहीं भेजा जा सकता, जब तक कि वह मामला Bhartiya Sakshya Adhiniyam, 2023 (BSA) की धारा 132 (Section 132) में बताए गए अपवादों में न आता हो। यह फैसला वकीलों की स्वतंत्रता, गोपनीयता और न्याय व्यवस्था की स्वायत्तता को मजबूत करने वाला माना जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश डी.आर. गवई (CJI B.R. Gavai), न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने यह निर्णय एक सुओ मोटो (स्वप्रेरित) मामले में सुनाया। यह मामला तब उठा जब प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate – ED) ने दो वरिष्ठ वकीलों को मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में समन भेजा था।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: “वकीलों को समन भेजना अनुचित”
पीठ ने स्पष्ट किया —
“जांच अधिकारी किसी वकील को उसके मुवक्किल के खिलाफ केस की जानकारी के लिए समन नहीं भेज सकता, जब तक कि वह Section 132 के अपवादों में न आता हो।”
अदालत ने कहा कि Section 132 के तहत यह विशेषाधिकार (Privilege) वकीलों को दिया गया है, जिससे मुवक्किल और वकील के बीच गोपनीय संवाद (Client-Attorney Privilege) सुरक्षित रहता है।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि—
- वकीलों को समन भेजने से पहले सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस (SP) से कम दर्जे के अधिकारी को अनुमति नहीं दी जा सकती।
- ऐसा समन तभी जारी होगा जब वरिष्ठ अधिकारी लिखित रूप में यह संतुष्टि दर्ज करे कि मामला Section 132 के अपवाद में आता है।
- यह प्रक्रिया न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) के अधीन होगी।
इसके साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि नागरिक (Civil) और आपराधिक (Criminal) मामलों में किसी वकील को दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए भी समन नहीं भेजा जा सकता।
⚖️ मामला: ED द्वारा दो वरिष्ठ वकीलों को भेजे गए समन पर विवाद
यह निर्णय Care Health Insurance Ltd के ESOP (Employee Stock Option Plan) से जुड़े एक विवाद से शुरू हुआ था।
जून 2025 में ED ने वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को समन भेजा था। आरोप था कि उन्होंने पूर्व Religare Enterprises की चेयरपर्सन रश्मि सलूजा के लिए ESOP स्कीम पर सकारात्मक कानूनी राय दी थी।
बार काउंसिलों और कानूनी निकायों ने इस समन की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि इससे “वकील-मुवक्किल की गोपनीयता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता” पर आघात होता है।
विरोध के बाद ED ने समन वापस ले लिया।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की स्वतः संज्ञान कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) के अध्यक्ष विपिन नायर ने 20 जून को मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर इस पर सुओ मोटो कार्रवाई की मांग की थी। उन्होंने इसे “गंभीर और अस्थिर करने वाला विकास” बताया।
बाद में, 25 जून को, न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ ने भी कहा था कि—
“जांच एजेंसियों या पुलिस को वकीलों को सीधे समन करने की अनुमति देना, कानूनी पेशे की स्वतंत्रता और न्याय प्रणाली की नींव को कमजोर करेगा।”
⚖️ अदालत का तर्क: “वकील न्याय प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकील न्याय प्रशासन का अभिन्न अंग हैं, और उन्हें जांच एजेंसियों द्वारा प्रताड़ित करना न्याय प्रणाली के लिए हानिकारक है।
“अगर वकीलों को उनके मुवक्किल की कानूनी सलाह पर पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा, तो यह स्वतंत्र न्याय प्रणाली के लिए सीधा खतरा होगा।”
🧩 कानूनी महत्त्व और निहितार्थ
यह फैसला न केवल वकील-मुवक्किल संबंध की गोपनीयता की रक्षा करता है, बल्कि कानूनी पेशे की गरिमा और स्वतंत्रता को भी संविधान के तहत पुनः पुष्टि करता है।
यह आदेश अब सभी जांच एजेंसियों और पुलिस के लिए बाध्यकारी दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करेगा।
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