सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अब गवाह को धमकाने पर पुलिस सीधे दर्ज कर सकेगी FIR

सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि IPC की धारा 195A के तहत गवाह को धमकाना संज्ञेय अपराध है। पुलिस को FIR दर्ज करने और जांच करने का पूरा अधिकार है, कोर्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं।


⚖️ सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अब गवाह को धमकाने पर पुलिस सीधे दर्ज कर सकेगी FIR

गवाह को धमकाना संज्ञेय अपराध: सुप्रीम कोर्ट ने कहा—पुलिस सीधे FIR दर्ज कर सकती है

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर 2025:
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 195A के तहत गवाह को धमकाना या डराना एक संज्ञेय अपराध (Cognisable Offence) है। इसका अर्थ यह है कि पुलिस को ऐसी किसी भी घटना पर सीधे FIR दर्ज करने और जांच करने का अधिकार है, बिना किसी औपचारिक अदालत शिकायत के।

न्यायमूर्ति संजय कुमार और अलोक अराधे की पीठ ने कहा कि यह धारा गवाहों को झूठी गवाही देने के लिए धमकाने या उन्हें डराने के अपराध को परिभाषित करती है — चाहे धमकी उनके व्यक्तिगत सुरक्षा, प्रतिष्ठा या संपत्ति के खिलाफ हो या किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ हो जिससे वे जुड़े हों।


📜 सुप्रीम कोर्ट ने किया स्पष्ट: यह अपराध अलग प्रकृति का है

पीठ ने कहा —

“धारा 195A (गवाहों को धमकाने का अपराध) को IPC की धाराओं 193, 194, 195 और 196 से अलग और विशिष्ट अपराध के रूप में परिकल्पित किया गया है।”

कोर्ट ने इस संदर्भ में केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें कहा गया था कि पुलिस इस धारा के तहत FIR दर्ज नहीं कर सकती और केवल अदालत ही शिकायत पर संज्ञान ले सकती है।

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सुप्रीम कोर्ट ने इस दृष्टिकोण से असहमति जताते हुए कहा कि यह धारा जानबूझकर एक अलग प्रक्रिया के तहत लाई गई थी ताकि गवाहों की सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को सुनिश्चित किया जा सके।


🚔 पुलिस को सीधे कार्रवाई का अधिकार

पीठ ने कहा कि किसी गवाह को पहले अदालत जाने और शिकायत दर्ज कराने की अनिवार्यता “न्याय प्रक्रिया में अव्यवहारिक बाधा” साबित होगी।

कोर्ट ने कहा,

“यदि किसी गवाह को यह बताया जाए कि पहले अदालत में जाकर शिकायत करें और फिर जांच शुरू होगी, तो यह प्रक्रिया को पंगु बना देगी और गवाहों को न्याय से दूर कर देगी।”

सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा —

“धारा 195A के तहत अपराध संज्ञेय है। अतः, पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धाराओं 154 और 156 के तहत कार्रवाई करने से रोका नहीं जा सकता।”


🧾 दो राज्यों के मामलों में आया फैसला

यह फैसला केरल और कर्नाटक हाईकोर्ट के दो अलग-अलग निर्णयों के खिलाफ दाखिल अपीलों पर आया। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को कानून की दृष्टि से गलत और अस्थिर बताया।

पहले मामले में, केरल हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा था कि पुलिस धारा 195A के तहत FIR दर्ज नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को रद्द करते हुए कहा कि राज्य सरकार की अपील सही थी और पुलिस को ऐसी स्थिति में कार्रवाई का अधिकार है।


🧩 दूसरा मामला: भाजपा कार्यकर्ता हत्याकांड से जुड़ा

दूसरा मामला 2016 में भाजपा कार्यकर्ता योगेश गौदार की हत्या से जुड़ा था, जिसमें पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता विनय कुलकर्णी पर गवाहों को धमकाने का आरोप था।

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इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने CBI की अपील स्वीकार करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें आरोपियों के खिलाफ संज्ञान लेने की प्रक्रिया को निरस्त किया गया था।


⚖️ फैसले का महत्व

इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि गवाहों को धमकाने या डराने के मामलों में अदालत की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। अब पुलिस सीधे FIR दर्ज कर सकेगी, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और गवाहों की सुरक्षा को और मजबूती मिलेगी।

यह फैसला न केवल गवाह संरक्षण कानून (Witness Protection) को प्रभावी बनाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया में भय और दबाव की कोई गुंजाइश न रहे


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