दिल्ली हाईकोर्ट ने NCM अध्यक्ष पद पर अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की मांग पर दायर याचिका खारिज की

दिल्ली हाईकोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग (NCM) के अध्यक्ष पद पर केवल मुस्लिम और सिख समुदाय के बजाय अन्य अल्पसंख्यकों को शामिल करने की मांग वाली याचिका खारिज की। कोर्ट ने कहा—कानून किसी विशेष समुदाय को अध्यक्ष बनाने का आदेश नहीं देता।


⚖️ दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला: NCM अध्यक्ष किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय से हो सकता है, सरकार को प्रतिनिधित्व पर विचार का निर्देश

दिल्ली हाईकोर्ट ने NCM अध्यक्ष पद पर अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की मांग पर दायर याचिका खारिज की

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर 2025:
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण आदेश में उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities – NCM) के अध्यक्ष पद पर केवल मुस्लिम या सिख समुदाय के बजाय अन्य मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक समुदायों — जैसे जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी — से भी नियुक्तियां की जाएं।

मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 (NCM Act, 1992) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो यह अनिवार्य करे कि अध्यक्ष किसी विशेष समुदाय से ही हो।


📜 कोर्ट का अवलोकन

बेंच ने अपने आदेश में कहा,

“अधिनियम की धारा 3 के अनुसार आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पाँच सदस्य होंगे। कानून में यह नहीं कहा गया है कि आयोग के सभी सदस्य किसी विशेष अल्पसंख्यक समुदाय से हों।”

कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि,

“केवल यह प्रावधान है कि पाँच सदस्य, जिनमें अध्यक्ष भी शामिल हैं, अल्पसंख्यक समुदायों से होंगे। लेकिन यह आवश्यक नहीं कि वे किसी एक विशेष समुदाय से हों।”

अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को यदि प्रतिनिधित्व को लेकर शिकायत है, तो वह अपनी बात सरकार के समक्ष रख सकता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि अगर ऐसा प्रतिनिधित्व प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे कानून के अनुसार विचार कर निर्णय लिया जाए।

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🧾 याचिकाकर्ता का तर्क

यह याचिका सलेक चंद जैन नामक व्यक्ति ने दाखिल की थी। उन्होंने तर्क दिया कि NCM अधिनियम की धारा 3(2) के तहत आयोग के अध्यक्ष और सदस्य केवल मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक समुदायों से होने चाहिए।

जैन ने कहा कि 1978 में आयोग की स्थापना के बाद से अब तक 16 अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं, जिनमें से 14 मुस्लिम और 2 सिख समुदाय से हैं, जबकि अन्य अल्पसंख्यक — जैसे जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी — को कभी अवसर नहीं दिया गया

“सरकार का यह रवैया मनमाना, अनुचित और असंगत है। यह अन्य मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति उपेक्षा को दर्शाता है,” — याचिका में कहा गया।

उन्होंने यह भी बताया कि पिछले दो वर्षों में उन्होंने कई बार सरकार को प्रतिनिधित्व भेजा, जिसमें जैन समुदाय के किसी सदस्य को अध्यक्ष पद पर नियुक्त करने का अनुरोध किया गया था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।


⚖️ अदालत का निष्कर्ष

कोर्ट ने माना कि NCM अधिनियम, 1992, का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों का समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है, लेकिन यह नहीं कहता कि अध्यक्ष पद पर किसी एक समुदाय से ही नियुक्ति हो।
इसलिए, अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस प्रकार के नीति-निर्णय (policy matters) का अधिकार केंद्र सरकार के पास है।

“हम किसी प्रशासनिक या नीतिगत निर्णय को बाध्य नहीं कर सकते। परंतु यदि याचिकाकर्ता उचित मंच पर प्रतिनिधित्व करता है, तो सरकार को उस पर विचार अवश्य करना चाहिए,” — अदालत ने टिप्पणी की।


🔍 पृष्ठभूमि

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना 1978 में अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास की निगरानी के लिए की गई थी।
NCM अधिनियम, 1992 के तहत वर्तमान में भारत में छह मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक समुदाय हैं — मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन।

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लेकिन अब तक आयोग के प्रमुख पद पर केवल मुस्लिम और सिख समुदायों को ही नियुक्त किया गया है, जिससे अन्य समुदायों के बीच प्रतिनिधित्व की असमानता को लेकर असंतोष बना हुआ है।


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