दिल्ली हाईकोर्ट: दहेज मामलों में पति के दूर के रिश्तेदारों को फंसाना कानून का दुरुपयोग — कोर्ट ने एफआईआर रद्द की


🧾दिल्ली हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न मामलों में आईपीसी की धारा 498A के दुरुपयोग पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि बिना सबूत दूर के रिश्तेदारों को फंसाना कानून की मंशा के विपरीत है। जस्टिस अमित महाजन की बेंच ने दो महिलाओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द की।

📰दिल्ली हाईकोर्ट: दहेज मामलों में पति के दूर के रिश्तेदारों को फंसाना कानून का दुरुपयोग — कोर्ट ने एफआईआर रद्द की


⚖️ दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा — “498A का गलत इस्तेमाल असली पीड़ितों के लिए न्याय में बाधा”

दिल्ली हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के मामलों में आईपीसी की धारा 498A के दुरुपयोग पर कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि अब यह चिंताजनक प्रवृत्ति बन गई है कि पति के दूर के रिश्तेदारों को भी ऐसे मामलों में बिना पर्याप्त सबूतों के घसीटा जा रहा है।

जस्टिस अमित महाजन की एकल पीठ ने दो महिलाओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि 498A का उद्देश्य महिलाओं को दहेज संबंधी अत्याचारों से बचाना है, न कि निर्दोष लोगों को परेशान करना। अदालत ने कहा कि जब कानून के प्रावधानों का गलत उपयोग किया जाता है, तो उसका असली मकसद कमजोर हो जाता है।


📜 मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एक विवाहित महिला द्वारा दर्ज कराई गई दहेज उत्पीड़न की एफआईआर से जुड़ा था। शिकायतकर्ता ने अपने पति, ससुरालवालों और दो अन्य महिलाओं — अपने पति की मौसी (मां की बहन) और चचेरी बहन — पर मानसिक उत्पीड़न और दहेज से जुड़ी प्रताड़ना के आरोप लगाए थे।

एफआईआर में महिला ने कहा था कि दोनों रिश्तेदार बार-बार उसकी शादीशुदा जिंदगी में दखल देती थीं, उसे धमकी भरे बयान देती थीं और यहां तक कि उसके गहने और उपहार भी छीन लिए थे।

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दोनों आरोपित महिलाओं ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि वे शिकायतकर्ता के साथ नहीं रहती थीं, और उन्हें झूठे तरीके से वैवाहिक विवाद में फंसाया गया है।


⚖️ हाईकोर्ट का निर्णय और टिप्पणियां

जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि आईपीसी की धारा 498A का उद्देश्य विवाह के भीतर होने वाली क्रूरता और दहेज की मांग को अपराध घोषित करना था, ताकि महिलाओं को ससुराल में सुरक्षा मिल सके।

कोर्ट ने कहा —

“सेक्शन 498A को महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए लाया गया था, लेकिन इसका गलत इस्तेमाल असली पीड़ितों के लिए न्याय प्राप्त करना और कठिन बना देता है।”

अदालत ने आगे कहा कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में अब यह “सामान्य प्रवृत्ति” बन गई है कि पति के सभी रिश्तेदारों को, चाहे वे कहीं भी रहते हों, आरोपों में शामिल कर दिया जाता है।

“ऐसे मामलों में पुलिस और निचली अदालतों को सतर्क रहना चाहिए कि कानून के दायरे में निर्दोषों को फंसाने की कोशिश न हो,” कोर्ट ने कहा।


📚 एफआईआर रद्द, कोर्ट ने दी नसीहत

अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता की ओर से लगाए गए आरोप सामान्य और अस्पष्ट थे तथा किसी ठोस सबूत से समर्थित नहीं थे। इसके अलावा, आरोपित महिलाएं अलग शहर में रहती थीं और उनका वैवाहिक विवाद में सीधा हस्तक्षेप साबित नहीं हुआ।

इन तथ्यों को देखते हुए कोर्ट ने एफआईआर और उससे जुड़ी आगे की सभी कार्यवाहियों को रद्द (quash) कर दिया।


⚖️ कोर्ट का संदेश: “498A के गलत इस्तेमाल से असली पीड़ितों का नुकसान”

जस्टिस महाजन ने कहा कि धारा 498A जैसे संवेदनशील प्रावधानों का उद्देश्य महिलाओं को वास्तविक क्रूरता से बचाना है। लेकिन जब इसका दुरुपयोग किया जाता है, तो इससे कानून की विश्वसनीयता पर असर पड़ता है।

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कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की झूठी या बढ़ा-चढ़ाकर दर्ज की गई शिकायतें न्याय प्रणाली पर अतिरिक्त बोझ डालती हैं और वास्तविक मामलों में न्याय मिलने में देरी होती है।

“दूर के रिश्तेदारों के खिलाफ बिना साक्ष्य के मुकदमे दर्ज करना कानून की आत्मा के विपरीत है। न्यायालयों को ऐसे मामलों में संतुलन बनाकर चलना चाहिए ताकि निर्दोष लोग परेशान न हों और असली पीड़ितों को न्याय मिल सके,” — कोर्ट ने कहा।


📌 निष्कर्ष

दिल्ली हाईकोर्ट ने दो महिलाओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करते हुए कहा कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में पुलिस और निचली अदालतों को सावधानी बरतनी चाहिए।
498A का उद्देश्य सुरक्षा है, प्रतिशोध नहीं।


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