सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न मामले में सास को बरी किया। पड़ोसी की गवाही को महत्व देते हुए अदालत ने कहा कि दहेज का कोई प्रमाण नहीं था। जानिए इस अहम फैसले के बारे में।
Supreme Court’s decision: Allegation of dowry harassment on mother-in-law is wrong, neighbour’s testimony is decisive
सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्णय: सास पर दहेज उत्पीड़न का आरोप गलत, पड़ोसी की गवाही निर्णायक
सुप्रीम कोर्ट ने भस्मता भगवती देवी बनाम राज्य उत्तराखंड मामले में 2025 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें सास को दहेज उत्पीड़न के आरोप से बरी किया गया। कोर्ट ने पाया कि दहेज की मांग को लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं था, और पड़ोसी की गवाही को निर्णायक माना।
मामले का पृष्ठभूमि
यह मामला 2001 में एक महिला की मौत से जुड़ा है, जिसके बाद उसके परिवार ने सास पर दहेज उत्पीड़न और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया था। शिकायत के मुताबिक, मृतका ने अपने माता-पिता से कहा था कि सास उसे दहेज के लिए परेशान करती थी। लेकिन कोर्ट ने इस आरोप को खारिज किया और सास को बरी कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा कि मामले में कोई ठोस दहेज मांग का प्रमाण नहीं था। पड़ोसी ने गवाही दी थी कि सास ने कभी दहेज की मांग नहीं की। इसके अलावा, डॉक्टर के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आत्महत्या की वजह फांसी लगाना बताई गई, लेकिन दहेज उत्पीड़न का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं था। कोर्ट ने इस गवाही को महत्व देते हुए कहा कि दहेज उत्पीड़न का आरोप गलत था।
मुख्य बिंदु:
- पड़ोसी की गवाही निर्णायक: पड़ोसी ने गवाही दी कि सास ने कभी दहेज की मांग नहीं की, जो कोर्ट ने महत्वपूर्ण माना।
- दहेज उत्पीड़न का आरोप खारिज: कोर्ट ने पाया कि दहेज की कोई मांग नहीं की गई थी, इसलिए Section 498-A IPC लागू नहीं होता।
- मृतक का आत्महत्या करना: पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतका की मौत का कारण फांसी बताया गया, जो दहेज उत्पीड़न से संबंधित नहीं था।
- उच्च न्यायालय का निर्णय रद्द: सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय का फैसला पलटते हुए आरोपी को बरी कर दिया।
मामला शीर्षक: भस्मता भगवती देवी बनाम राज्य उत्तराखंड (न्यूट्रल सिटेशन: 2025 INSC 1051)
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