सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि मुस्लिम विधवा अपने पति की संपत्ति में केवल एक-चौथाई (¼) हिस्से की हकदार है यदि उसकी कोई संतान नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिक्री समझौते से मालिकाना हक नहीं बदलता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा: मुस्लिम विधवा को पति की संपत्ति में केवल ¼ हिस्सा मिलेगा, संतान न होने पर भी नहीं बढ़ेगा अधिकार
⚖️ सुप्रीम कोर्ट का फैसला: “मुस्लिम विधवा को पति की संपत्ति में केवल ¼ हिस्सा, संतान न होने पर भी सीमित अधिकार”
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिम विधवा यदि बिना संतान के रह जाती है, तो वह अपने पति की संपत्ति में केवल एक-चौथाई (¼) हिस्सेदारी की ही हकदार होगी। कोर्ट ने कहा कि कुरान में निर्धारित उत्तराधिकार के सिद्धांत ही मुस्लिम कानून में लागू होते हैं और कोई भी न्यायालय इससे भिन्न आदेश नहीं दे सकता।
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया, जिसमें अपीलकर्ता ज़ोहरबी, जो अपने पति चंद खान की विधवा थीं, के तीन-चौथाई हिस्से के दावे को अस्वीकार कर दिया गया था।
🧾 मामला: “चंद खान की संपत्ति और वारिसों का विवाद”
मामला चंद खान नामक व्यक्ति की संपत्ति से जुड़ा था, जिनकी मृत्यु बिना संतान के हो गई। उनकी पत्नी ज़ोहरबी ने दावा किया कि मुस्लिम उत्तराधिकार कानून के तहत वह अपने पति की संपत्ति की ¾ हिस्सेदारी की अधिकारी हैं।
हालांकि, मृतक के भाई (प्रतिवादी) ने तर्क दिया कि चंद खान ने जीवनकाल में एक बिक्री समझौता (Sale Agreement) किया था, जिसके तहत संपत्ति का कुछ हिस्सा पहले ही स्थानांतरित हो चुका था। इस कारण, वह हिस्सा “मौरुक्का संपत्ति” (मृतक द्वारा छोड़ी गई संपत्ति) का हिस्सा नहीं होना चाहिए।
ट्रायल कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार किया, लेकिन अपील कोर्ट और बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि सिर्फ बिक्री समझौते (Agreement to Sell) से किसी भी प्रकार का मालिकाना हक (Ownership Right) उत्पन्न नहीं होता।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या: “सेल एग्रीमेंट से मालिकाना हक नहीं बदलता”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 की धारा 54 के अनुसार, “Agreement to Sell” अपने आप में मालिकाना हक का हस्तांतरण नहीं करता।
“जब तक रजिस्टर्ड सेल डीड नहीं बनाई जाती, तब तक संपत्ति का स्वामित्व मूल मालिक के पास ही रहता है,” कोर्ट ने कहा।
इस आधार पर, कोर्ट ने पाया कि चंद खान की मृत्यु तक संपत्ति उनके नाम ही रही और यह “मौरुक्का” (मृतक की छोड़ी संपत्ति) का हिस्सा बनी रही। अतः इसे कानूनी वारिसों में बाँटा जाना था।
🕋 इस्लामी उत्तराधिकार सिद्धांत पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
खंडपीठ ने मुस्लिम कानून के तहत “मौरुक्का (matruka)” और “उत्तराधिकार (inheritance)” की अवधारणा पर विस्तार से चर्चा की।
कोर्ट ने कहा कि मृतक द्वारा छोड़ी गई चल और अचल संपत्ति, दोनों “मौरुक्का” कहलाती हैं। पहले मृतक के कर्ज और वसीयत (Will) को निपटाया जाता है (वसीयत अधिकतम एक-तिहाई तक मान्य होती है), उसके बाद शेष संपत्ति को कुरान के अध्याय IV, आयत 12 के अनुसार बाँटा जाता है।
कुरान के अनुसार —
- यदि पति की संतान है, तो पत्नी को 1/8 हिस्सा मिलता है।
- यदि संतान नहीं है, तो पत्नी को 1/4 हिस्सा मिलता है।
इस मामले में, क्योंकि चंद खान की कोई संतान नहीं थी, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि उनकी विधवा ज़ोहरबी केवल 1/4 हिस्सेदारी की हकदार हैं। शेष संपत्ति मृतक के अन्य वारिसों, जिनमें भाई भी शामिल हैं, में बाँटी जाएगी।
🧩 कोर्ट की टिप्पणी: “कुरान में निर्धारित हिस्सेदारी अंतिम”
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया —
“मुस्लिम वारिस कानून यह दर्शाता है कि सभी वारिसों को तय हिस्सेदारी मिलती है। पत्नी को 1/8 हिस्सा मिलता है, लेकिन यदि कोई संतान या पोता नहीं है, तो यह हिस्सा 1/4 तक बढ़ जाता है।”
कोर्ट ने कहा कि कानूनी वारिसों का अधिकार कुरान के प्रावधानों से निर्धारित होता है, और न्यायालय उस हिस्सेदारी को न तो बढ़ा सकता है और न घटा सकता है।
🧭 निष्कर्ष
इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया कि मुस्लिम उत्तराधिकार कानून (Islamic Inheritance Law) में विधवा की हिस्सेदारी सीमित और निश्चित है।
यह निर्णय इस्लामी उत्तराधिकार सिद्धांतों की संवैधानिक स्थिति को दोहराता है और यह सुनिश्चित करता है कि धार्मिक कानूनों की व्याख्या उनके मूल शास्त्रों के अनुरूप ही होगी।
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