RSS सभाओं पर सरकारी रोक पर कर्नाटक HC की फटकार — सरकार के आदेश पर अंतरिम स्थगन


कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ पीठ ने राज्य सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें 10 से अधिक लोगों की आरएसएस सभाओं को बिना अनुमति अवैध घोषित किया गया था। अदालत ने कहा — सरकार नागरिकों के मौलिक अधिकार नहीं छीन सकती।

“RSS सभाओं पर सरकारी रोक पर कर्नाटक HC की फटकार — सरकार के आदेश पर अंतरिम स्थगन”


⚖️ कर्नाटक हाईकोर्ट ने आरएसएस सभाओं पर सरकार के आदेश को दिया झटका, कहा — “सरकार मौलिक अधिकार नहीं छीन सकती”

कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ पीठ ने मंगलवार को राज्य सरकार के उस विवादास्पद आदेश पर अंतरिम स्थगन (interim stay) लगा दिया, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) या किसी भी संगठन की 10 से अधिक लोगों की सभाओं को बिना अनुमति अवैध घोषित किया गया था।

न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने यह आदेश पुनश्थेन सेवा संस्था (Punashthen Seva Sanstha), हुब्बल्ली द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।


🧑‍⚖️ याचिकाकर्ता की दलील — सरकार ने संविधान के अधिकार छीने

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक हरनाहल्ली ने तर्क दिया कि राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों — विशेषकर अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19(1)(b) (शांतिपूर्ण सभा का अधिकार) का उल्लंघन करता है।

उन्होंने कहा,

“सरकार ने आदेश दिया है कि 10 से अधिक लोगों की किसी भी सभा के लिए अनुमति आवश्यक होगी। इसका मतलब यह है कि अगर किसी पार्क में जन्मदिन की पार्टी भी रखी जाए, तो वह भी अवैध मानी जाएगी। यह नागरिक अधिकारों का खुला उल्लंघन है।”

उन्होंने आगे तर्क दिया कि जब पुलिस अधिनियम (Police Act) पहले से लागू है, तो सरकार को अलग से इस तरह का प्रशासनिक आदेश जारी करने की आवश्यकता ही क्या थी।

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🧩 कोर्ट के तीखे सवाल — “क्या सरकार कुछ और हासिल करना चाहती थी?”

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने सरकार से पूछा,

“क्या सरकार इस आदेश के माध्यम से कुछ और उद्देश्य हासिल करना चाहती थी?”

राज्य सरकार के अधिवक्ताओं ने अदालत से एक दिन का समय मांगा ताकि वे अपना पक्ष रख सकें। अदालत ने यह समय प्रदान करते हुए राज्य सरकार, गृह विभाग, पुलिस महानिदेशक (DGP) और हुब्बल्ली पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी किया।


🏛️ अदालत का आदेश — “संविधान प्रदत्त अधिकार सरकार नहीं छीन सकती”

अपने आदेश में अदालत ने कहा कि राज्य सरकार ने अपने आदेश से नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर अनुचित रोक लगाई है। आदेश में स्पष्ट कहा गया:

“राज्य सरकार ने अपने 18 अक्टूबर 2025 के आदेश में यह घोषित किया है कि 10 से अधिक लोगों की सभा बिना अनुमति अपराध मानी जाएगी। यह आदेश नागरिकों के अनुच्छेद 19(1)(a) और 19(1)(b) में प्रदत्त अधिकारों का हनन करता है।”

अदालत ने कहा कि सरकार ने पुलिस अधिनियम की शक्तियों का गलत उपयोग किया है।

“सड़कों, पार्कों, मैदानों, झीलों में प्रवेश तक को सीमित कर दिया गया है। इस आदेश के माध्यम से राज्य सरकार ने संवैधानिक स्वतंत्रताओं को निलंबित करने का प्रयास किया है, जो अस्वीकार्य है।”


🧾 अदालत ने दिया अंतरिम स्थगन आदेश

अदालत ने कहा कि संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को किसी सरकारी आदेश से न तो सीमित किया जा सकता है, न ही छीना जा सकता है
इसलिए, अदालत ने राज्य सरकार के आदेश पर अंतरिम स्थगन (interim stay) जारी किया और मामले की अगली सुनवाई स्थगित कर दी।

“संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को सरकार के आदेश से समाप्त नहीं किया जा सकता। अतः आदेश को स्थगित किया जाता है,” — अदालत ने कहा।


🧩 कानूनी प्रभाव और राजनीतिक पृष्ठभूमि

यह मामला कर्नाटक में सार्वजनिक सभाओं और राजनीतिक संगठनों की गतिविधियों को लेकर जारी विवाद के केंद्र में है। राज्य सरकार ने 18 अक्टूबर को आदेश जारी किया था कि किसी भी सार्वजनिक स्थल पर 10 से अधिक लोगों का एकत्र होना अनुमति के बिना अवैध होगा।

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कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 19 के मूल सिद्धांतों के विपरीत है और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता पर प्रत्यक्ष प्रहार करता है।


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