इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक को शपथपत्र में अधूरी जानकारी देने पर तलब किया। कोर्ट ने कहा—राज्य सरकार की बजाय निचले स्तर के अधिकारी जवाबी हलफनामे दाखिल करते हैं, जिससे अधूरी जानकारी मिलती है। अगली सुनवाई 26 नवंबर को होगी।
लखनऊ खंडपीठ
⚖️ अधूरी जानकारी पर हाईकोर्ट नाराज, माध्यमिक शिक्षा निदेशक को किया तलब
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान दाखिल शपथपत्र में अधूरी जानकारी दिए जाने पर राज्य शिक्षा विभाग के प्रति नाराजगी जताई है।
न्यायालय ने इस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए माध्यमिक शिक्षा निदेशक को अगली सुनवाई पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से व्यक्तिगत उपस्थिति दर्ज करने का आदेश दिया है।
मामले की अगली सुनवाई 26 नवंबर 2025 को होगी।
🏛️ अदालत की टिप्पणी: “निचले स्तर के अधिकारियों के शपथपत्र से अधूरी जानकारी मिलती है”
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने कहा कि यह प्रवृत्ति चिंताजनक है कि राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की बजाय निचले स्तर के अधिकारी जवाबी शपथपत्र दाखिल करते हैं, जिससे अदालत को मामले की संपूर्ण और स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाती।
अदालत ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक को व्यक्तिगत शपथपत्र दाखिल करने का भी निर्देश दिया है, ताकि पूरे घटनाक्रम और विभागीय कार्रवाई का ब्यौरा प्रस्तुत किया जा सके।
📜 मामला क्या है?
यह आदेश श्रीमती पूर्णिमा शुक्ला द्वारा दाखिल एक जनहित याचिका पर पारित किया गया।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि प्रतापगढ़ जिले के एक अनुदानित विद्यालय की प्रबंध समिति ने नियमों की अनदेखी करते हुए अपने परिजनों की नियुक्तियां कीं और विद्यालय के प्रशासनिक ढांचे में मनमानी की।
याचिकाकर्ता ने कहा कि समिति ने प्रधानाचार्य और सहायक अध्यापकों को हटाकर अपने परिजनों की नियुक्तियां कीं, जबकि इन नियुक्तियों के लिए न तो पूर्व स्वीकृति ली गई, न ही रिक्तियों का प्रकाशन किसी समाचार पत्र में किया गया।
इसके अलावा, याचिका में यह भी मांग की गई कि विद्यालय की अनुदान राशि रोक दी जाए, क्योंकि यह धनराशि सार्वजनिक निधि है और इसका उपयोग केवल नियमों के अनुसार ही किया जा सकता है।
🧾 शपथपत्र में स्वयं स्वीकार किए गए आरोप
राज्य सरकार की ओर से दाखिल जवाबी शपथपत्र में यह स्वीकार किया गया कि विद्यालय की प्रबंध समिति के सदस्य आपस में घनिष्ठ संबंधी हैं और उन्होंने अपने परिजनों की नियुक्तियां कीं।
शपथपत्र में यह भी बताया गया कि डीआईओएस, प्रतापगढ़ ने एडीआईओएस से जांच कराई थी, जिसकी रिपोर्ट 4 जून 2011 को प्रस्तुत की गई।
रिपोर्ट के अनुसार नियुक्तियां नियमों के विपरीत पाई गईं। इसके बाद रिपोर्ट को उप निदेशक, शिक्षा, प्रयागराज को भेजा गया, लेकिन अदालत ने पाया कि इसके आगे विभागीय कार्रवाई के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया है।
⚖️ कोर्ट का असंतोष और निर्देश
पीठ ने कहा कि यह अत्यंत खेदजनक है कि राज्य के शिक्षा विभाग ने इतने गंभीर आरोपों पर कार्रवाई का स्पष्ट ब्यौरा नहीं दिया।
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि “जब राज्य सरकार की बजाय निचले स्तर के अधिकारी हलफनामे दाखिल करते हैं, तो ऐसी स्थिति बनती है जहां न्यायालय को अधूरी जानकारी मिलती है और मामले का सार अस्पष्ट रह जाता है।”
अदालत ने इस पर गंभीर असंतोष व्यक्त करते हुए माध्यमिक शिक्षा निदेशक को स्वयं स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया।
📌 निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ का यह आदेश शिक्षा विभाग में प्रशासनिक जवाबदेही को लेकर एक अहम कदम है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि जनहित मामलों में अस्पष्ट या अधूरे हलफनामे स्वीकार नहीं किए जाएंगे, और विभागीय अधिकारियों को व्यक्तिगत जिम्मेदारी के साथ जवाब देना होगा।
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