सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद पर पोस्ट डालने वाले लॉ ग्रेजुएट के खिलाफ केस रद्द करने से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद पुनर्निर्माण पर सोशल मीडिया पोस्ट SOCIAL MEDIA POST करने वाले लॉ ग्रेजुएट मोहम्मद फैय्याज मंसूरी की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट सबूतों और दलीलों पर फैसला करेगा।

“सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद पर पोस्ट डालने वाले लॉ ग्रेजुएट के खिलाफ केस रद्द करने से किया इनकार”


⚖️ सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद पोस्ट मामले में लॉ ग्रेजुएट की याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण को लेकर सोशल मीडिया पोस्ट करने वाले लॉ ग्रेजुएट मोहम्मद फैय्याज मंसूरी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला रद्द करने की मांग की गई थी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की पीठ ने कहा कि उसने याचिकाकर्ता का पोस्ट देखा है और उसे रद्द करने का कोई कारण नहीं दिखता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मंसूरी द्वारा उठाया गया बचाव का मुद्दा ट्रायल कोर्ट में अपने गुण-दोष के आधार पर विचार योग्य रहेगा।


📱 सोशल मीडिया पोस्ट बना आपराधिक मामला

मोहम्मद फैय्याज मंसूरी, जो एक कानून स्नातक LAW GRADUATE हैं, पर आरोप है कि उन्होंने 5 अगस्त 2020 को फेसबुक पर एक पोस्ट साझा की थी जिसमें लिखा था:

“बाबरी मस्जिद भी एक दिन फिर से बनेगी, जैसे तुर्की में सोफिया मस्जिद को फिर से बनाया गया।”

इस पोस्ट को लेकर पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर FIR दर्ज की थी, जिसमें आपत्तिजनक बयान देने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोप लगाए गए।

मंसूरी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में समन को रद्द करने की मांग की थी, लेकिन हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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⚖️ सुप्रीम कोर्ट ने कहा — ट्रायल कोर्ट ही तय करेगा मामला

सुनवाई के दौरान, मंसूरी की ओर से पेश अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने कोई अश्लील या उकसाने वाला बयान नहीं दिया।
उन्होंने कहा कि मंसूरी ने केवल ऐतिहासिक संदर्भ में टिप्पणी की थी और असली उकसाने वाला पोस्ट किसी अन्य व्यक्ति ने किया था, जिसे पुलिस ने जांच के दायरे में नहीं लिया।

इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने सख्त लहजे में कहा,

“कृपया हमसे कोई कठोर टिप्पणी न कहलवाएँ।”

पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस स्तर पर हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं देखती। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट में अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार होगा, जहाँ सबूतों के आधार पर निष्कर्ष निकाला जाएगा।

इसके बाद मंसूरी ने अपनी याचिका वापस ले ली।


🏛️ कानूनी पृष्ठभूमि

यह मामला अयोध्या विवाद और धार्मिक भावनाओं से जुड़ी टिप्पणियों के संवेदनशील संदर्भ में आया है।
2020 में जब यह पोस्ट सामने आई थी, तब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था।
ऐसे समय में सोशल मीडिया पर बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण से जुड़ी पोस्ट को लेकर कई विवाद खड़े हुए थे।

कानून विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार के मामलों में अदालतें यह देखती हैं कि क्या बयान सार्वजनिक शांति और व्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न करता है, या वह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है।


⚖️ सुप्रीम कोर्ट का रुख — अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सामाजिक जिम्मेदारी

इस आदेश से यह स्पष्ट संदेश गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है और इसे संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत कानूनी सीमाओं में रहकर प्रयोग किया जाना चाहिए

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कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि जब मामला धार्मिक भावनाओं या सामाजिक सद्भाव को प्रभावित करने की संभावना रखता है, तो ऐसे मामलों को सामान्य रूप से ट्रायल कोर्ट में जाने देना ही उचित है, ताकि साक्ष्य और परिस्थितियों का समुचित परीक्षण हो सके।


🔖 निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका ऐसे मामलों में संतुलित दृष्टिकोण अपनाती है — जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानूनी जिम्मेदारी दोनों का समान रूप से सम्मान किया जाता है।
अब इस मामले की अगली सुनवाई निचली अदालत में होगी, जहाँ मंसूरी अपना बचाव पेश करेंगे।


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