इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाजवादी पार्टी (सपा) सांसद मोहिबुल्ला नदवी को अपनी चौथी पत्नी को हर महीने ₹30,000 गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। अदालत ने कहा—पति होने के नाते पत्नी के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता।
हाईकोर्ट ने कहा — “भरण-पोषण अधिकार है, कृपा नहीं”
“चौथी पत्नी को दें ₹30 हजार गुजारा भत्ता” — इलाहाबाद हाईकोर्ट का सपा सांसद मोहिबुल्ला नदवी को आदेश
⚖️ इलाहाबाद हाईकोर्ट का सख्त आदेश — “सपा सांसद मोहिबुल्ला नदवी चौथी पत्नी को दें ₹30,000 मासिक भत्ता”
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद मोहिबुल्ला नदवी को अपनी चौथी पत्नी को हर महीने ₹30,000 गुजारा भत्ता (Maintenance) देने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि पति अपनी पत्नी के भरण-पोषण की कानूनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता, चाहे विवाह का क्रम या व्यक्तिगत विवाद कुछ भी हो।
न्यायमूर्ति वंदना मिश्रा की एकलपीठ ने यह आदेश मोहिबुल्ला नदवी की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया, जिसमें उन्होंने पारिवारिक अदालत द्वारा पारित भरण-पोषण आदेश को चुनौती दी थी।
🏛️ मामला क्या था?
सपा सांसद मोहिबुल्ला नदवी की चौथी पत्नी FOURTH WIFE ने पारिवारिक न्यायालय में गुजारा भत्ता की मांग की थी। उनका कहना था कि विवाह के बाद नदवी ने उनसे दूरी बना ली, आर्थिक सहयोग बंद कर दिया और वैवाहिक जिम्मेदारियों से किनारा कर लिया।
पारिवारिक न्यायालय ने सबूतों और रिकॉर्ड के आधार पर निर्णय देते हुए पत्नी के पक्ष में आदेश पारित किया था, जिसके तहत नदवी को हर महीने ₹30,000 भरण-पोषण के रूप में देने का निर्देश दिया गया।
इसी आदेश को चुनौती देते हुए नदवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
⚖️ हाईकोर्ट ने कहा — “भरण-पोषण अधिकार है, कृपा नहीं”
सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट कहा कि भरण-पोषण कोई दया या उपकार नहीं, बल्कि पत्नी का वैधानिक और नैतिक अधिकार है।
न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) दोनों ही पति को पत्नी के प्रति आर्थिक जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करते।
अदालत ने टिप्पणी की —
“पति चाहे किसी भी सामाजिक या राजनीतिक पद पर हो, विवाह का बंधन उसे पत्नी की आर्थिक सुरक्षा की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करता।”
📜 अदालत ने माना पारिवारिक न्यायालय का आदेश उचित
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया कि पारिवारिक अदालत ने पर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर निर्णय दिया था।
पत्नी ने विवाह का प्रमाण, जीवन-यापन के लिए आवश्यक खर्च और नदवी की आय के दस्तावेज प्रस्तुत किए थे।
पीठ ने यह भी कहा कि भले ही यह चौथा विवाह था, लेकिन वह वैधानिक रूप से संपन्न हुआ, और इसलिए पत्नी को धारा 125 सीआरपीसी (CrPC) के तहत भरण-पोषण पाने का पूरा अधिकार है।
⚖️ अदालत की महत्वपूर्ण टिप्पणी
अदालत ने कहा —
“यदि कोई पति अपनी पत्नी को बिना उचित कारण के अलग रखता है और उसकी मूलभूत आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखता, तो यह न केवल वैवाहिक दायित्व का उल्लंघन है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं के भी विरुद्ध है।”
कोर्ट ने नदवी की याचिका को खारिज करते हुए पारिवारिक अदालत का आदेश बरकरार रखा और उन्हें निर्देश दिया कि वह हर महीने ₹30,000 की राशि नियमित रूप से अदा करें।
साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि भुगतान में देरी या उल्लंघन की स्थिति में कठोर कार्रवाई की जा सकती है।
📌 कानूनी और सामाजिक महत्व
यह फैसला न केवल मुस्लिम व्यक्तिगत कानूनों में स्त्रियों के आर्थिक अधिकारों की पुष्टि करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका लिंग-न्याय (Gender Justice) को लेकर सतर्क और संवेदनशील है।
यह आदेश यह संदेश देता है कि चाहे व्यक्ति राजनीतिक रूप से प्रभावशाली क्यों न हो, कानून की नजर में सभी बराबर हैं।
महिला के भरण-पोषण का अधिकार उसकी गरिमा और सम्मान से जुड़ा है, जिसे अदालत ने एक बार फिर सशक्त रूप से संरक्षित किया है।
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