सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब FIR निजी दुश्मनी और बदले की भावना से दर्ज हो, तो उसे रद्द किया जा सकता है। एमपी हाईकोर्ट का आदेश पलटते हुए कोर्ट ने धारा 376 IPC के तहत दर्ज FIR और चार्जशीट क्वैश कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि यदि कोई आपराधिक कार्यवाही दुर्भावना (mala fide) या निजी प्रतिशोध (personal vengeance) के मकसद से शुरू की जाती है, तो ऐसी FIR और चार्जशीट को रद्द किया जा सकता है। अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का आदेश पलट दिया और अपीलकर्ता के खिलाफ दर्ज FIR व चार्जशीट को क्वैश कर दिया।
पृष्ठभूमि
मामला एक महिला द्वारा दर्ज कराई गई FIR से जुड़ा है, जिसमें उसने अपने सहकर्मी पर शादी का झांसा देकर रेप (धारा 376 आईपीसी) का आरोप लगाया था। आरोपी ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता ने पहले भी कई बार उसे परेशान किया और यहां तक कि उसके घर पर जहरीला पदार्थ खाने की कोशिश की थी। आरोपी की शिकायतों पर कार्रवाई करते हुए महिला को उसके नियोक्ता ने कारण बताओ नोटिस (show cause notice) जारी किया था। इसी के बाद महिला ने चार महीने बाद FIR दर्ज कराई।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने कहा कि केस का पूरा घटनाक्रम बताता है कि FIR आफ्टरथॉट थी और इसे “वेंडेटा” (बदले की भावना) से प्रेरित होकर दर्ज कराया गया।
बेंच ने State of Haryana v. Bhajan Lal (1992) केस का हवाला देते हुए कहा:
“जहां किसी आपराधिक कार्यवाही का उद्देश्य आरोपी से बदला लेना हो और व्यक्तिगत दुश्मनी की वजह से कार्यवाही शुरू की गई हो, वहां FIR और चार्जशीट रद्द की जानी चाहिए।”
अदालत ने Mohd. Wajid v. State of U.P. केस को भी उद्धृत किया और कहा कि जब कोई आरोपी अदालत से FIR क्वैश कराने की मांग करता है तो अदालत को FIR को सावधानीपूर्वक और बारीकी से देखना चाहिए।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाईकोर्ट का आदेश निरस्त करते हुए FIR और चार्जशीट को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि ऐसी कार्यवाहियां न केवल आरोपी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं बल्कि न्याय व्यवस्था का दुरुपयोग भी हैं।
🏛 केस: XYZ बनाम मध्य प्रदेश राज्य (Neutral Citation: 2025 INSC 1143)
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