धर्मस्थल सामूहिक दफ़न मामला: सुप्रीम कोर्ट ने ‘गैग ऑर्डर’ से किया इंकार, कहा – ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलना नहीं’

धर्मस्थल सामूहिक दफ़न मामला: सुप्रीम कोर्ट ने ‘गैग ऑर्डर’ से किया इंकार, कहा – ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलना नहीं

Dharamsthal mass burial case: Supreme Court refuses ‘gag order’, says ‘do not suppress freedom of expression’

नई दिल्ली, 8 अगस्त 2025 — सुप्रीम कोर्ट ने आज कर्नाटक के धर्मस्थल मंदिर परिसर में कथित “सामूहिक दफ़न” मामले में याचिकाकर्ता के पक्ष में ‘गैग ऑर्डर’ जारी करने से इंकार कर दिया और कहा कि ऐसा आदेश “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल देगा”। साथ ही, ट्रायल कोर्ट को इस मामले पर पुनः विचार करने का निर्देश दिया गया।

यह मामला तब सुर्खियों में आया जब एक पूर्व सफाईकर्मी ने आरोप लगाया कि उसे 1995 से 2014 के बीच लगभग 20 वर्षों तक धर्मस्थल मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में मानव अवशेषों को गुपचुप तरीके से दफनाने के लिए धमकाया गया।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने याचिकाकर्ता हर्षेंद्र कुमार डी की उस दलील को ठुकरा दिया जिसमें कहा गया था कि टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर प्रसारित सामग्री उनकी प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुँचा रही है।

वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि समाचार चैनल और सोशल मीडिया पर याचिकाकर्ता व उनके भाई को फिल्मों के सीरियल किलर्स, कंकालों और बाहुबली जैसे किरदारों से जोड़कर दिखाया जा रहा है।

इस पर जस्टिस मनमोहन ने कहा:

“गैग ऑर्डर केवल बेहद अपवादस्वरूप मामलों में दिए जाते हैं। जैसे – अगर पत्रकार को पता चल जाए कि पुलिस के पास आतंकवादी का मोबाइल नंबर है, तो वह प्रकाशित नहीं कर सकता, क्योंकि इससे आतंकवादी को चेतावनी मिल जाएगी। ऐसे मामलों को ‘सुपर इंजंक्शन’ कहते हैं।”

कोर्ट का रुख

पीठ ने कहा, “हम एक मुक्त देश में रहते हैं, और इसके लिए थोड़ी-बहुत कीमत चुकानी पड़ती है। यह कीमत चुकाना एक स्वतंत्र देश में रहने के लिए उचित है।”

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हालांकि, जस्टिस मनमोहन ने भी माना कि “कुछ हद होनी चाहिए” और सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता मानहानि का केस दर्ज कर सकते हैं, लेकिन गैग ऑर्डर देना उचित नहीं होगा।

अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया:

  • ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट के किसी भी अवलोकन से प्रभावित हुए बिना, याचिकाकर्ता की अंतरिम राहत की अर्जी पर दो सप्ताह के भीतर पुनः निर्णय ले।

पृष्ठभूमि

यह विशेष अनुमति याचिका (SLP) कर्नाटक हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें पत्रकार पर लगाया गया गैग ऑर्डर रद्द कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि आदेश “बिना पर्याप्त कारणों के, इतनी व्यापक रोक लगाता है कि यह किसी भी आलोचना को दबा देता है”

केस शीर्षक: Harshendra Kumar D v. Kudla Rampage & Ors
SLP(C) No. 21969/2025 IV-A

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