The Supreme Court has taken away the responsibility of hearing all criminal cases from the Allahabad High Court judge in a strong reprimand
“कानून की घोर अज्ञानता” को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के आदेश को बिना प्रतिवादियों को नोटिस दिए रद्द कर दिया। मामले को दोबारा सुनवाई के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजा गया।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस प्रशांत कुमार को सभी आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटाने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के उस आदेश को “न्याय का मखौल” करार दिया जिसमें एक स्पष्ट रूप से दीवानी (civil) विवाद को आपराधिक मामला मानते हुए कार्यवाही की अनुमति दी गई थी।
न्यायमूर्ति पीबी पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ Shikhar Chemicals द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 4.59 लाख रुपये के लेन-देन विवाद को लेकर दर्ज आपराधिक मामला रद्द करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि विवाद पूरी तरह से व्यावसायिक और दीवानी प्रकृति का है, और इसमें कोई आपराधिक तत्व नहीं है।
हालांकि, जस्टिस प्रशांत कुमार ने 5 मई के आदेश में याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि एक छोटे व्यापारी के लिए दीवानी मामला लड़ना महंगा और वर्षों लंबी प्रक्रिया होगी। उन्होंने यह भी कहा था कि “सिविल उपायों पर जोर देना बहुत ही अव्यावहारिक” होगा और इसे “अच्छे पैसे को बुरे पैसे के पीछे फेंकने” “good money chasing bad money” जैसा बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस सोच को “गंभीर रूप से चिंताजनक” बताया और कहा कि इस आधार पर आपराधिक कानून का उपयोग दीवानी लेन-देन वसूलने के लिए करना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। शीर्ष अदालत ने आदेश में स्पष्ट कहा कि उन्हें तत्काल हस्तक्षेप करना पड़ा और हाईकोर्ट का आदेश बिना प्रतिवादी को सुने ही रद्द किया गया।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त कार्रवाई:
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि-
- जस्टिस प्रशांत कुमार से तुरंत सभी आपराधिक मामलों का अधिकार वापस लिया जाए।
- इसके साथ ही निर्देश दिया गया कि उनके कार्यकाल के शेष समय में उन्हें किसी भी आपराधिक मामले की सुनवाई न सौंपी जाए।
- यदि वे एकल पीठ (Single Bench) के रूप में बैठते भी हैं, तब भी उनके समक्ष कोई आपराधिक मामला नहीं आना चाहिए।
- अब यह मामला किसी अन्य न्यायाधीश को सौंपा जाएगा और वहीं से दोबारा विचार किया जाएगा।
न्यायिक व्यवस्था को स्पष्ट संदेश:
इस निर्णय के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संकेत दिया है कि दीवानी मामलों को आपराधिक रंग देना न केवल कानून का दुरुपयोग है, बल्कि यह न्याय की बुनियादी संरचना को भी नुकसान पहुंचाता है। अदालत ने दो टूक कहा कि इस प्रकार की प्रवृत्ति को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और न्यायिक सीमाओं का उल्लंघन स्वीकार्य नहीं है।
