‘सिर्फ पेशा वकालत होने से अभियोजन से छूट नहीं मिल सकती: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला’

“आप वकील हैं तो क्या अपराध में मास्टरमाइंड नहीं हो सकते?” — सुप्रीम कोर्ट

‘Just being a lawyer cannot be exempted from prosecution: Supreme Court’s big decision’

🧾विधि संवाददाता

नई दिल्ली, 6 अगस्त 2025:
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी वकील को सिर्फ इसलिए अभियोजन से छूट नहीं दी जा सकती क्योंकि वह पेशे से अधिवक्ता है। अदालत ने एक वकील द्वारा आपराधिक मामले में मुख्य आरोपी के साथ साजिश रचने के आरोप को महज टेलीफोनिक बातचीत के आधार पर खारिज करने से इनकार कर दिया।


⚖️ “आप वकील हैं तो क्या अपराध में मास्टरमाइंड नहीं हो सकते?” — सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने विनोद बनाम राजस्थान राज्य मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि:

“जांच के दौरान यदि कोई आपत्तिजनक सामग्री सामने आती है, तो वह दर्ज की जानी चाहिए, भले ही वह किसी वकील के खिलाफ ही क्यों न हो।”

अदालत ने कहा कि फोन पर की गई बातचीत भी साक्ष्य का हिस्सा हो सकती है, और इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।

📞 टेलीफोन पर बातचीत को लेकर कोर्ट की सख्त टिप्पणी

याचिकाकर्ता के वकील ने यह तर्क दिया कि:

“सिर्फ आरोपी से फोन पर बात करने मात्र से अभियोग नहीं चलाया जा सकता। प्रत्यक्ष साक्ष्य होना जरूरी है।”

इस पर न्यायमूर्ति मित्तल ने hypothetically पूछा:

“मान लीजिए कोई वकील मकान मालिक को सलाह देता है कि अगर किरायेदार घर खाली नहीं कर रहा है, तो ट्रक ड्राइवर से कुचलवा दो — तो क्या ये सिर्फ कानूनी सलाह मानी जाएगी?”

🚫 अभियोजन से छूट नहीं सिर्फ पेशेवर स्थिति के कारण

पीठ ने यह स्पष्ट किया कि:

“कोई भी पेशेवर, वकील होने के नाते अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकता, यदि उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद हों।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह तय करना ट्रायल का विषय है कि बातचीत आपराधिक षड्यंत्र का हिस्सा है या नहीं। इस स्तर पर अदालत जांच में हस्तक्षेप नहीं करेगी।

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📌 निष्कर्ष

पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि मामला अपनी प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ेगा और वकील के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रहेगी। यह फैसला वकालत पेशे में नैतिकता और कानून के पालन की सीमा रेखा को स्पष्ट करता है।

📄 मामला:

विनोद बनाम राजस्थान राज्य

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