📄 सुप्रीम कोर्ट ने जमानत याचिकाओं की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय “जमानत अदालत” बनकर रह गया है और निचली अदालतों को जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट बना जमानत अदालत, न्यायिक बोझ पर जस्टिस नागरत्ना की गंभीर चिंता
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिकाओं की बढ़ती संख्या पर न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना Justice-B-V-Nagarathna ने गंभीर चिंता जताई और कहा कि सर्वोच्च न्यायालय “जमानत अदालत” बनकर रह गया है।
उन्होंने टिप्पणी की कि यदि निचली अदालतें और हाई कोर्ट समय पर उचित निर्णय लें तो सुप्रीम कोर्ट को हर छोटे-बड़े जमानत मामले देखने की ज़रूरत न पड़े।
न्यायपालिका पर बोझ
वरिष्ठ अधिवक्ता शंकर नारायणन ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट का कीमती समय जमानत और मामूली मामलों में व्यर्थ हो रहा है। निचली अदालतों और हाई कोर्ट्स को अधिक जिम्मेदारी से काम करना चाहिए ताकि मामलों का बोझ कम हो।
जस्टिस नागरत्ना की टिप्पणी
जस्टिस नागरत्ना ने स्पष्ट कहा कि “अगर लोगों की वैध अपेक्षाएं निचली अदालतें ही पूरी कर दें तो लोगों को सुप्रीम कोर्ट तक आना न पड़े।” उन्होंने कहा कि अदालत का काम केवल जमानत देने तक सीमित नहीं रह सकता।
आंकड़े भी चिंता का विषय
सुप्रीम कोर्ट ने 19 दिनों में 25 से अधिक जमानत याचिकाओं पर सुनवाई की है। अदालत का कहना है कि यह संख्या बताती है कि निचली अदालतों द्वारा न्याय देने की गति और गुणवत्ता में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।
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