SC ने AFT को दी शक्ति: कोर्ट मार्शल निर्णय को बदले जाने की अनुमति – सैन्य न्याय में नया अध्याय

“सुप्रीम कोर्ट ने S.K. Jain v. Union of India में यह स्पष्ट किया कि Armed Forces Tribunal (AFT) को Section 15(6) के तहत कोर्ट-मार्शल के फैसले को cognate अपराध में बदलने और सजा फिर से तय करने की शक्ति है। जानिए फैसले की पृष्ठभूमि, कानूनी तर्क और न्यायपालिका सीमाएं।”

“SC ने AFT को दी शक्ति: कोर्ट मार्शल निर्णय को बदले जाने की अनुमति” | सैन्य न्याय में नया अध्याय


SC ने तय किया: AFT को कोर्ट-मार्शल निर्णय बदलने का अधिकार

नई दिल्ली, 10 अक्टूबर 2025 — सर्वोच्च न्यायालय ने आज सुपाठ्य रूप से यह निर्णय सुनाया कि Armed Forces Tribunal (AFT) को Section 15(6) के अंतर्गत यह अधिकार है कि वह Court Martial द्वारा आरोप सिद्ध न किए गए अपराध को एक वैध cognate offence में बदल सके और पुनः सजा निर्धारित कर सके।

इस प्रकार, शिखर अदालत ने AFT की शक्तियों एवं सुप्रीम कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप की सीमाएँ को भी परिभाषित किया — न्यायालय केवल तभी हस्तक्षेप करेगा जब Tribunal का निर्णय मनमाना, असंगत अथवा अत्यधिक हो

पृष्ठभूमि और कानूनी सफर

S.K. Jain, जो Indian Army के Army Ordnance Corps में Colonel (Selection Grade) पद पर तैनात थे, उन पर दो आरोप लगाए गए — भ्रष्टाचार की मांग और बिना लाइसेंस गोला-बारूद रखने का आरोप। General Court Martial (GCM) ने उन्हें दोषी ठहराया और सेवा से बर्खास्त करने की सजा सुनाई।

Jain ने इस फैसले को AFT में चुनौती दी। Tribunal ने पाया कि भ्रष्टाचार संबंधी आरोप सिद्ध नहीं हुए तथा गोला-बारूद रखने का आरोप भी पर्याप्त प्रमाणों से समर्थित नहीं है। फिर Tribunal ने Section 15(6) और Army Rules की धारा Rule 62(4) का प्रयोग करते हुए, निर्णय बदलकर उन्हें Section 63 (act prejudicial to good order and discipline) के अंतर्गत दोषी ठहराया, तथा सजा को dismissal से compulsorily retirement में परिवर्तित किया—साथ ही सभी पेंशन व लाभ बनाए रखे गए।

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सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। Jain ने दलील दी कि Tribunal की संप्रेषण शक्ति सीमा पार कर गई और सजा अनुपातहीन है।

न्यायालय का विश्लेषण

न्यायमूर्ति J.B. Pardiwala और Alok Aradhe की पीठ ने पहले Army Act, 1950 की धाराओं 63 और 69 का परीक्षण किया। उन्होंने कहा कि Section 69 नागरिक अपराधों के लिए कानूनी कल्पना (legal fiction) बनाती है, जबकि Section 63 उस तरह के कर्मों या विचलनों को पकड़ती है जो Good Order और Military Discipline के लिए हानिकारक हैं।

फिर Armed Forces Tribunal Act, 2007 के Section 15(6) को देखा गया। यह धारा AFT को यह अधिकार देती है कि वह Court Martial के निर्णय को substitute कर सके — अर्थात् यदि साक्ष्य किसी अन्य related/offence (cognate offence) को सहन करते हों, Tribunal वह अपराध चुन सकते हैं और सजा पुनर्निर्धारित कर सकते हैं।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस शक्तिगत हस्तक्षेप में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका सीमित है। Section 30 के अंतर्गत, Supreme Court केवल तभी हस्तक्षेप करेगी अगर Tribunal का निर्णय arbitrary, unreasonable या capricious हो।

वास्तविक प्रमाणों की समीक्षा करते हुए, न्यायालय ने पाया कि गोली-बारूद का जब्त होना सम्मत तथ्य है, जिसे Jain ने नकारा नहीं। यह व्यवहार अधिनियम (act) Good Order & Discipline के खिलाफ था, इसलिए Tribunal द्वारा दंड को सजग रूप से घटाना उचित था। Tribunal ने दोष सिद्ध न होने की स्थिति में भी न्यायसंगत दृष्टिकोण अपनाया — इसे अत्यधिक दंड नहीं कहा जा सकता।

अतः सुप्रीम कोर्ट ने AFT के आदेश को बिना किसी हेरफेर के बरकरार रखा और Jain की अपील खारिज कर दी।

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निष्कर्ष

यह निर्णय सैन्य न्यायशास्त्र (military jurisprudence) में एक अहम संकेत देती है — AFT को निष्पक्ष रूप से cognate discovery और सजा संशोधन की शक्ति दी गई है, बशर्ते वह न्यायोचित और स्वरूपानुसारी हो। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह सीमित किया कि उच्च न्यायालय सिर्फ तभी दखल देगा जब Tribunal का निर्णय न्यायशास्त्र के प्रतिकूल हो। यह मामला भविष्य में सैन्य अपीलों की दिशा तय कर सकता है।


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