SC dismissed disciplinary action against two lawyers, said – ‘Forgiveness is the basis of religion’
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: वकीलों की माफ़ी को स्वीकारते हुए अनुशासनात्मक कार्यवाही को किया समाप्त
सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने SLP (Crl.) No. 6029/2025 – एन. ईश्वरनाथन बनाम राज्य मामले में दो वकीलों के खिलाफ चल रही अनुशासनात्मक कार्यवाही को समाप्त कर दिया। पीठ में सीजेआई बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन, जस्टिस जॉयमल्या बागची शामिल थे।
🔸 पृष्ठभूमि:
मामला एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड पी. सोमा सुंदरम और ड्राफ्टिंग वकील एस. मुथुकृष्णन के खिलाफ शुरू हुई कार्रवाई से जुड़ा था। आरोप था कि दोनों वकीलों ने एक आपराधिक विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाख़िल करते समय प्रक्रिया संबंधी कुछ त्रुटियाँ कीं।
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी (तत्कालीन) ने इसे गंभीर माना और उन्हें अवमानना का दोषी ठहराते हुए दंडित किया, जबकि न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने वकीलों की बिना शर्त माफ़ी को स्वीकार करते हुए कोई दंड न देने का मत रखा।
न्यायिक मतभेद के चलते मामला तीन-न्यायाधीशों की पीठ को सौंपा गया।
🔹 SCBA ने दी राय:
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की कार्यकारी समिति के सदस्य भी उपस्थित हुए और उन्होंने कहा कि यह निर्णय वकीलों के पेशेवर भविष्य पर गहरा असर डाल सकता है।
⚖️ न्यायालय की टिप्पणियाँ:
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने निर्णय सुनाते हुए कहा:
“न्याय का गौरव केवल दंड में नहीं, बल्कि सच्चे पश्चात्ताप को स्वीकार करने में भी है।”
पीठ ने “क्षमायै धर्मस्य मूलम्” (क्षमा धर्म का मूल है) का संदर्भ देते हुए कहा कि जब कोई वकील ईमानदारी से गलती स्वीकार करता है, तो उसे सुधार का अवसर मिलना चाहिए। ऐसे मामूली दोषों को आधार बनाकर किसी वकील के करियर को बर्बाद नहीं किया जा सकता।
🔚 निर्णय:
पीठ ने वकीलों द्वारा दी गई बिना शर्त माफ़ी को स्वीकार किया और उनके विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्णय लिया। यह फैसला न्यायालय में दया और उत्तरदायित्व के संतुलन का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है।
मामला: एन. ईश्वरनाथन बनाम राज्य (उप पुलिस अधीक्षक प्रतिनिधि)
SLP (Crl.) No.: 6029/2025 | MA No.: 1264/2025
