CJI गवई ने कहा वो न्यायमूर्ति वर्मा मामले की सुनवाई से खुद को अलग करते है क्योंकि मैं इस विषय पर पूर्व में संवाद में शामिल रहा हूं

CJI Gavai said he recuses himself from hearing Justice Verma case as I have been involved in discussions on this subject in the past

संविधान के अनुच्छेद 124, 217, 218 व न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के आलोक में चुनौती

वर्तमान स्थिति:

  • मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने स्वयं को सुनवाई से अलग किया
  • केस को “उचित पीठ” को सौंपा जाएगा
  • याचिका में पूर्व CJI संजीव खन्ना द्वारा 8 मई, 2025 को राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री को भेजी गई इंपीचमेंट की सिफारिश को असंवैधानिक बताया गया है

⚖️ प्रमुख संवैधानिक और विधिक तर्क (Justice Varma की याचिका में):

1. इन-हाउस प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता पर प्रश्न:

  • 1999 के फुल कोर्ट संकल्प के अंतर्गत गठित इन-हाउस प्रक्रिया का उद्देश्य केवल फैक्ट-फाइंडिंग और आंतरिक आत्म-संयम था।
  • यह प्रक्रिया यदि इंपीचमेंट की सिफारिश तक जाती है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 218 के तहत संसद के विशेषाधिकार का अतिक्रमण करती है।

📌 याचिकाकर्ता का तर्क:

“यह एक अनौपचारिक समानांतर प्रक्रिया बन गई है, जो संविधान के बुनियादी ढांचे (Basic Structure) के तहत स्थापित अधीनस्थ शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।”


2. न्यायसंगत प्रक्रिया का उल्लंघन (Violation of Natural Justice):

  • याचिकाकर्ता को:
    • सबूतों तक पहुंच नहीं दी गई (विशेष रूप से CCTV फुटेज)
    • गवाहों की गवाही उसके अनुपस्थित रहने पर दर्ज हुई
    • जवाब देने या खंडन करने का अवसर नहीं मिला

🧾 याचिका में कहा गया है:

“संपूर्ण प्रक्रिया पूर्वनिश्चित और पक्षपाती रही, जिससे निष्कर्ष पूर्वग्रह से ग्रसित प्रतीत होते हैं।”


3. फॉर्मल शिकायत का अभाव:

  • कोई लिखित शिकायत नहीं थी, फिर भी इन-हाउस कमेटी गठित कर दी गई।
  • 🔥 14 मार्च, 2025 को दिल्ली स्थित न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की घटना के दौरान आग में जले हुए नकदी के बंडल कथित रूप से अग्निशमन दल द्वारा पाए गए।
ALSO READ -  मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला कहा कि अजन्मा बच्चा भी भारतीय नागरिकता का दावा कर और प्राप्त कर सकता है-

👨‍⚖️ याचिकाकर्ता का तर्क:

“कोई शिकायत नहीं, कोई प्राथमिकी नहीं, फिर भी यह प्रक्रिया शुरू की गई, जो प्रक्रियात्मक अनियमितता है।”


4. गोपनीयता और पारदर्शिता के बीच असंतुलन:

  • इन-हाउस जांच की प्रकृति गोपनीय मानी जाती है, परंतु इसके परिणामों का सार्वजनिक और संवैधानिक प्रभाव होता है, विशेषतः जब इंपीचमेंट की सिफारिश की जाती है।

👨‍⚖️ मुख्य न्यायाधीश का स्वयं को अलग करना: क्यों महत्वपूर्ण?

CJI गवई ने कहा:

“मैं इस सुनवाई का हिस्सा नहीं हो सकता क्योंकि मैं इस विषय पर पूर्व में संवाद में शामिल रहा हूं।”

🔍 न्यायिक नैतिकता के लिहाज से यह कदम सराहनीय है, क्योंकि यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत — “न कोई अपने मामले में न्यायाधीश हो सकता है” (nemo judex in causa sua) — की पुष्टि करता है।


📜 संवैधानिक प्रक्रियाएं: न्यायाधीश की बर्खास्तगी कैसे होती है?

अनुच्छेद 124(4) और 217/218 के तहत:

  • संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत (special majority) से ‘address’ पास किया जाता है
  • पहले जांच आयोग (Judges Inquiry Act, 1968) के तहत जांच होती है
  • इन-हाउस प्रक्रिया कोई वैधानिक प्रावधान नहीं, सिर्फ प्रशासनिक साधन

⚠️ लेकिन अगर इन-हाउस रिपोर्ट सीधे राष्ट्रपति को ‘सिफारिश’ भेजती है, तो यह संसद के विशेषाधिकारों में हस्तक्षेप के रूप में देखा जा सकता है।


🧩 प्रमुख प्रश्न जो न्यायालय के समक्ष हैं:

  1. क्या इन-हाउस समिति द्वारा न्यायाधीश के खिलाफ ‘इंपीचमेंट सिफारिश’ देना संविधान-सम्मत है?
  2. क्या नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया गया?
  3. क्या बिना शिकायत के ही ऐसी संवेदनशील जांच शुरू की जा सकती है?
  4. क्या यह प्रक्रिया संसद की विशेष भूमिका को कमजोर करती है?
  5. क्या यह बुनियादी ढांचे (Basic Structure Doctrine) का उल्लंघन है?
ALSO READ -  कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के खिलाफ 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में हत्या का मुकदमा जारी रहेगा - HC

📅 अगला चरण:

  • CJI द्वारा उचित पीठ के समक्ष मामला भेजा जाएगा
  • संवैधानिक पीठ गठित होने की संभावना है
  • संविधान, न्यायिक जवाबदेही और बुनियादी ढांचे पर यह फैसला एक नई दृष्टि स्थापित कर सकता है

🔚 निष्कर्ष:

यह याचिका भारत के न्यायाधीशों की जवाबदेही (accountability) बनाम स्वायत्तता (autonomy) की बहस को केंद्र में ले आती है। यदि कोर्ट इन-हाउस प्रक्रिया की संवैधानिकता पर निर्णय देती है, तो इससे भविष्य में न्यायाधीशों की जांच और बर्खास्तगी की पूरी प्रक्रिया पर गहरा असर पड़ेगा।

मामला: न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा बनाम भारत संघ (2025)

Leave a Comment