👉 चेक स्वयं एक भुगतान का वादा है, Contract Act के तहत समय-सीमा से बाहर ऋण को भी मान्य किया जा सकता है: SC
Cheque itself is a promise to pay, out-of-time loan can also be validated under Contract Act: SC
📌सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चेक बाउंस मामलों में ऋण समय-सीमा से बाहर है या नहीं, यह साक्ष्यों से तय होगा। आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का आदेश पलटते हुए कोर्ट ने माना कि शिकायत समय पर दायर हुई थी और चेक मान्य अवधि में जारी किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आपराधिक अपील में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को पलटते हुए कहा कि क्या कोई ऋण समय-सीमा (Limitation) से बंधा है या नहीं, यह तथ्य और साक्ष्यों के आधार पर तय किया जाएगा।
मामला क्या था?
आरोपी ने अपीलकर्ता से 20 लाख रुपये उधार लिए और 25 जुलाई 2012 को एक प्रॉमिसरी नोट (Promissory Note) पर हस्ताक्षर किए। इसमें कहा गया कि रकम और 2% मासिक ब्याज दिसंबर 2016 तक चुका दी जाएगी। इसके बाद आरोपी ने 28 अप्रैल 2017 को 10 लाख रुपये का चेक जारी किया, लेकिन अपर्याप्त शेष राशि (insufficient FUNDS) के कारण चेक बाउंस हो गया।
शिकायत दर्ज होने के बाद आरोपी ने हाई कोर्ट में धारा 482 CrPC के तहत कार्यवाही रद्द करने की याचिका दायर की। हाई कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका स्वीकार कर ली कि चेक 2017 में जारी हुआ जबकि प्रॉमिसरी नोट 2012 का था, अतः ऋण समय-सीमा से बाहर था।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा—
- चेक स्वयं एक भुगतान का वादा है, भले ही मूल ऋण समय-सीमा से बाहर हो।
- धारा 25(3), भारतीय संविदा अधिनियम (Contract Act, 1872) के तहत समय-सीमा से बाहर ऋण को भी मान्य किया जा सकता है।
- समय-सीमा एक मिश्रित प्रश्न है—कानून और तथ्य दोनों पर आधारित। इसे केवल साक्ष्यों के आधार पर तय किया जा सकता है, न कि 482 CrPC के तहत कार्यवाही रद्द कर।
कोर्ट का अवलोकन
- इस मामले में भुगतान की अंतिम तिथि दिसंबर 2016 थी, अतः तीन साल की अवधि दिसंबर 2019 तक मान्य थी।
- आरोपी द्वारा दिया गया चेक (28-04-2017) समय-सीमा के भीतर था।
- इसलिए शिकायत सही समय पर दायर की गई और हाई कोर्ट का आदेश गलत था।
नतीजा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने गलत दिशा में विचार किया और इस वजह से उसका निर्णय खारिज किया जाता है।
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