मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: नाबालिग से दुष्कर्म पर आरोपी की उम्रकैद बरकरार, कहा – नाबालिग की सहमति कानूनी नहीं

मद्रास हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति की नाबालिग लड़की से दुष्कर्म और गर्भवती बनाने के मामले में आरोपी की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी। कोर्ट ने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र की बच्ची की सहमति का कोई कानूनी महत्व नहीं होता। स्कूल रिकॉर्ड से ही उम्र तय होगी।

मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: नाबालिग से दुष्कर्म पर आरोपी की उम्रकैद बरकरार, कहा – नाबालिग की सहमति कानूनी नहीं

⚖️ मद्रास हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के दोषी की सजा बरकरार रखी

मद्रास हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित नाबालिग लड़की से दुष्कर्म कर उसे गर्भवती बनाने वाले एक व्यक्ति की सजा-ए-उम्रकैद को बरकरार रखते हुए यह स्पष्ट किया कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे की सहमति का कोई कानूनी महत्व नहीं होता। न्यायालय ने कहा कि इस तरह के मामलों में “स्कूल रिकॉर्ड” ही उम्र निर्धारण का सबसे विश्वसनीय स्रोत है।

यह निर्णय न्यायमूर्ति एम. एस. रमेश और न्यायमूर्ति वी. लक्ष्मीनारायणन की खंडपीठ ने क्रिश्नागिरी स्थित फास्ट ट्रैक महिला अदालत के आदेश के खिलाफ दायर आपराधिक अपील पर सुनाते हुए दिया।


🧒 नाबालिग की सहमति अमान्य, स्कूल रिकॉर्ड को प्राथमिकता

खंडपीठ ने कहा,

“यह एक और उदाहरण है जो यह दर्शाता है कि समाज के कमजोर तबकों, विशेषकर अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों के बच्चों की स्थिति कितनी दयनीय है।”

अदालत ने POCSO अधिनियम की धारा 2(ड) का हवाला देते हुए कहा कि 18 वर्ष से कम आयु का हर व्यक्ति बच्चा माना जाएगा और ऐसे मामलों में सहमति का प्रश्न ही नहीं उठता।
साथ ही, अदालत ने किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94(2) का उल्लेख करते हुए कहा कि स्कूल का जन्म प्रमाणपत्र नगर पालिका या पंचायत द्वारा जारी प्रमाणपत्रों से भी अधिक प्रमाणिक होता है।

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📚 साक्ष्यों से साबित हुई उम्र, गवाही से पुष्टि

साक्ष्यों और स्कूल रिकॉर्ड के आधार पर अदालत ने पाया कि पीड़िता की उम्र घटना के समय 15 वर्ष 3 माह थी।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि आरोपी की बेटी ने यह गवाही दी कि दशहरा अवकाश के दौरान उसने अपने पिता को पीड़िता के साथ देखा था, जिससे अभियोजन का दावा और मज़बूत हुआ।


⚖️ अनुसूचित जाति अधिनियम की धारा 3(2)(v) लागू

कोर्ट ने कहा कि चूंकि पीड़िता अनुसूचित जाति समुदाय से है, इसलिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(v) लागू होती है, जिसके तहत आजीवन कारावास अनिवार्य है।
इसके अलावा, भारतीय दंड संहिता की धाराएँ 361 और 366 (अपहरण) के प्रावधान भी इस मामले में लागू पाए गए।


⚖️ धारा 29 POCSO अधिनियम के तहत अभियुक्त पर दायित्व

अदालत ने POCSO अधिनियम की धारा 29 का हवाला देते हुए कहा,

“जहाँ किसी व्यक्ति पर अधिनियम की धाराएँ 3, 5, 7 या 9 के तहत अभियोजन होता है, वहाँ विशेष न्यायालय यह मान लेगा कि अपराध अभियुक्त ने ही किया है, जब तक कि वह विपरीत साबित न कर दे।”

खंडपीठ ने कहा कि फास्ट ट्रैक महिला अदालत द्वारा दिया गया फैसला पूरी तरह साक्ष्यों और कानून पर आधारित है, इसलिए इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।


👩‍⚖️ निचली अदालत का आदेश बरकरार

अदालत ने आरोपी की अपील खारिज करते हुए उसे सजा पूरी करने का निर्देश दिया। आदेश में यह भी दर्ज किया गया कि जब पीड़िता ने अदालत में गवाही दी, तब वह अपनी दूसरी संतान के नौवें महीने की गर्भवती थी, जो मामले की गंभीरता को दर्शाता है।

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🏛️ केस विवरण

मामला: Murugesan @ Murugesh बनाम State and Others
न्यायालय: मद्रास हाईकोर्ट
पीठ: न्यायमूर्ति एम. एस. रमेश और न्यायमूर्ति वी. लक्ष्मीनारायणन


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