अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने उस वकील के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की अनुमति दी है जिसने न्यायालय में जजों पर वस्तु फेंकी और चिल्लाया। यह घटना न्यायिक गरिमा के खिलाफ मानी जा रही है।
जजों पर वस्तु फेंकना और चिल्लाना निंदनीय कृत्य: अटॉर्नी जनरल ने वकील के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की दी मंज़ूरी
जजों पर वस्तु फेंकना और चिल्लाना न्यायालय की गरिमा का अपमान, अटॉर्नी जनरल ने दी अवमानना कार्रवाई की मंज़ूरी
भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने एक वकील के खिलाफ अवमानना कार्यवाही (Contempt of Court) शुरू करने की अनुमति दी है, जिसने कथित रूप से न्यायालय के भीतर जजों पर वस्तु फेंकी और चिल्लाया। इस घटना ने न्यायालय की गरिमा और अनुशासन पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस प्रकार का व्यवहार न केवल न्यायिक प्रक्रिया का अपमान है, बल्कि यह “न्यायपालिका की संस्थागत गरिमा और स्वतंत्रता” के लिए भी एक गंभीर चुनौती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अदालत में असहमति या असंतोष व्यक्त करने का अधिकार एक पेशेवर सीमा में रहकर होना चाहिए, लेकिन हिंसक या अनुचित आचरण को किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
यह मामला उस समय सामने आया जब संबंधित वकील ने एक न्यायिक कार्यवाही के दौरान अचानक आपा खो दिया और कोर्ट के भीतर जजों की ओर वस्तु फेंक दी, साथ ही तेज आवाज़ में चिल्लाया। इस कृत्य से न्यायालय की कार्यवाही बाधित हुई और उपस्थित अधिवक्ताओं तथा न्यायिक अधिकारियों में हड़कंप मच गया।
घटना की जानकारी सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्री के माध्यम से अटॉर्नी जनरल तक पहुंचाई गई, जिसके बाद उन्होंने तथ्यों का संज्ञान लेते हुए कहा कि यह आचरण अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2(c) के अंतर्गत “न्यायालय का अपमान” के दायरे में आता है।
अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने अपने बयान में कहा:
“न्यायालय में किसी भी प्रकार की हिंसा या असम्मानजनक व्यवहार न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता पर सीधा प्रहार है। इस प्रकार के कृत्य को न केवल निंदा की जानी चाहिए बल्कि इसके खिलाफ कठोर कार्रवाई भी आवश्यक है, ताकि न्यायालय की गरिमा बनी रहे।”
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका पर भरोसा और सम्मान संविधान के शासन सिद्धांतों का अभिन्न अंग है। इसलिए, कोई भी व्यक्ति — चाहे वह अधिवक्ता ही क्यों न हो — यदि अदालत की कार्यवाही में व्यवधान डालता है या न्यायाधीशों के प्रति असम्मान प्रदर्शित करता है, तो उसके खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई जरूरी है।
कानूनी विशेषज्ञों ने अटॉर्नी जनरल के निर्णय का समर्थन करते हुए कहा है कि यह कदम न्यायालय की संवैधानिक गरिमा की रक्षा के लिए आवश्यक है। वरिष्ठ अधिवक्ता आर.के. आनंद ने कहा, “कोर्टरूम अनुशासन केवल पेशेवर शालीनता नहीं, बल्कि न्याय प्रशासन की रीढ़ है। किसी वकील द्वारा हिंसक व्यवहार न केवल व्यक्तिगत विफलता है बल्कि यह न्याय व्यवस्था पर भी कलंक है।”
इस घटना ने बार काउंसिल और अधिवक्ता समुदाय में भी चर्चा छेड़ दी है। कई वकीलों ने कहा कि यदि ऐसे व्यवहार पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो यह एक खतरनाक मिसाल (dangerous precedent) बन सकती है।
अवमानना कार्यवाही की मंज़ूरी मिलने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई कर सकता है। अवमानना अधिनियम के तहत दोषसिद्धि होने पर संबंधित वकील को छह महीने तक की कैद या जुर्माना, या दोनों की सजा हो सकती है।
न्यायपालिका के प्रति सम्मान बनाए रखना हर अधिवक्ता का पेशेवर और नैतिक कर्तव्य है। अदालतें लोकतंत्र का अंतिम गढ़ हैं, और उन पर हमला किसी भी रूप में — शारीरिक, मौखिक या प्रतीकात्मक — लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा है।
अटॉर्नी जनरल की इस अनुमति से स्पष्ट संदेश गया है कि न्यायालय की गरिमा से समझौता करने वालों के लिए कानून में कोई रियायत नहीं होगी।
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