सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत असाध्य रूप से टूटी शादी में तलाक की अनुमति दी। संविधान पीठ का यह फैसला तलाक कानून में ऐतिहासिक बदलाव है।
Divorce possible in irretrievably broken marriage under Article 142: Supreme Court’s historic decision
अनुच्छेद 142 के तहत असाध्य रूप से टूटी शादी में तलाक संभव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक खंडपीठ ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए, यदि विवाह असाध्य रूप से टूट चुका हो (Irretrievable Breakdown of Marriage), तो तलाक दे सकता है।
यह आधार अभी तक किसी वैधानिक कानून में मान्यता प्राप्त नहीं था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय सार्वजनिक नीति के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की मुख्य बातें
- अदालत ने कारकों को सूचीबद्ध किया जिनसे तय किया जा सके कि विवाह वास्तव में असाध्य रूप से टूट चुका है।
- भरण-पोषण, गुजारा भत्ता और बच्चों के अधिकारों में संतुलन बनाए रखने पर भी जोर दिया गया।
- आपसी सहमति से तलाक (Section 13B, Hindu Marriage Act) के लिए 6 महीने की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि को विशेष परिस्थितियों में हटाया जा सकता है।
बहस के मुख्य तर्क
- इंदिरा जयसिंह और मीनाक्षी अरोड़ा: अनुच्छेद 142 के तहत अदालत को असाध्य रूप से टूटे विवाह को खत्म करने की शक्ति है।
- कपिल सिब्बल: तलाक की प्रक्रिया से अलग भरण-पोषण और बच्चों की कस्टडी पर पहले निर्णय होना चाहिए।
- दुष्यंत दवे: संसद ने इस आधार को मान्यता नहीं दी, इसलिए अदालत को इसे नया आधार नहीं बनाना चाहिए।
- वी. गिरी: असाध्य टूटन को मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) के हिस्से के रूप में माना जा सकता है।
नतीजा
पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ (जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस ए.एस. ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जे.के. माहेश्वरी) ने साफ कहा कि जब विवाह पूरी तरह से टूट चुका हो और पुनर्मिलन की कोई संभावना न बचे, तो सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत विवाह को भंग कर सकता है।
केस टाइटल: शिल्पा सैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन [T.P.(C) No.1118/2014] एवं अन्य संबंधित मामले
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