सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने किया बड़े पैमाने पर हाईकोर्ट जजों का तबादला

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर देशभर के कई हाईकोर्ट के जजों का तबादला किया है। दिल्ली, राजस्थान, केरल, गुजरात, इलाहाबाद और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के बीच हुए इस न्यायिक फेरबदल के पीछे क्या है संवैधानिक प्रक्रिया, जानिए विस्तार से।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने किया बड़े पैमाने पर हाईकोर्ट जजों का तबादला


केंद्र सरकार ने जारी की अधिसूचना, कई हाईकोर्ट जजों का तबादला

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने मंगलवार को देशभर के कई हाईकोर्ट जजों के तबादले को लेकर एक अहम अधिसूचना जारी की। यह तबादले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की अगस्त 2025 में की गई सिफारिशों के आधार पर किए गए हैं।
कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कुल नौ न्यायाधीशों के स्थानांतरण की पुष्टि की गई है।


दिल्ली, राजस्थान और केरल हाईकोर्ट में बड़े बदलाव

अधिसूचना के अनुसार, राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस दिनेश मेहता और जस्टिस अवनीश झिंगन, तथा केरल हाईकोर्ट की जस्टिस चंद्रशेखरन सुधा को दिल्ली हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया गया है।
वहीं दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण मोंगा को राजस्थान हाईकोर्ट और जस्टिस तारा वितस्ता गंजू को कर्नाटक हाईकोर्ट भेजा गया है।

इन बदलावों से तीन प्रमुख हाईकोर्ट — दिल्ली, राजस्थान और केरल — के न्यायिक ढांचे में प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा।


अन्य हाईकोर्ट में भी हुए तबादले

अन्य स्थानांतरणों में शामिल हैं:

  • जस्टिस चीकट्टी मानवेंद्रनाथ रॉय, गुजरात हाईकोर्ट से आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में स्थानांतरित।
  • जस्टिस डोनाड़ी रमेश, इलाहाबाद हाईकोर्ट से आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में भेजे गए।
  • जस्टिस संदीप एन. भट्ट, गुजरात हाईकोर्ट से मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में स्थानांतरित।
  • जस्टिस संजय कुमार सिंह, इलाहाबाद हाईकोर्ट से पटना हाईकोर्ट भेजे गए।
  • जस्टिस शुभेंदु समंता, कलकत्ता हाईकोर्ट से आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में स्थानांतरित हुए।
  • जस्टिस जे. निशा बानू, जो मद्रास हाईकोर्ट की वरिष्ठतम महिला न्यायाधीश हैं, उन्हें केरल हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया गया है।
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कॉलेजियम की अगस्त बैठक में बनी थी सिफारिश

यह स्थानांतरण सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की 25-26 अगस्त 2025 की बैठक में लिए गए निर्णयों का हिस्सा हैं।
कॉलेजियम ने उस बैठक में 14 न्यायाधीशों के तबादले और पुनर्नियोजन (repatriation) की सिफारिश की थी।
इनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मद्रास, राजस्थान, दिल्ली, इलाहाबाद, गुजरात, केरल, कलकत्ता, आंध्र प्रदेश और पटना हाईकोर्ट के न्यायाधीश शामिल थे।


संविधान का अनुच्छेद 222 और जज ट्रांसफर की प्रक्रिया

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 222 के तहत, भारत के राष्ट्रपति को अधिकार है कि वह किसी हाईकोर्ट के न्यायाधीश को एक अन्य हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर सकते हैं।
लेकिन यह निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से परामर्श के बाद ही लिया जा सकता है।

यह परामर्श प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम के तहत होती है, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
कॉलेजियम की सिफारिशें आम तौर पर कार्यपालिका पर बाध्यकारी (binding) मानी जाती हैं और देश की न्यायिक नियुक्ति और तबादला प्रणाली का आधार बनती हैं।


न्यायिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता पर बहस

हालांकि, हर बार की तरह इस बार भी न्यायाधीशों के तबादले को लेकर न्यायिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर बहस छिड़ी है।
कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि कॉलेजियम प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है ताकि यह प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और संस्थागत रूप से जवाबदेह बन सके।

दूसरी ओर, कॉलेजियम प्रणाली के समर्थक यह तर्क देते हैं कि यह तंत्र कार्यपालिका के प्रभाव से न्यायपालिका को स्वतंत्र रखता है, जो संविधान के “न्यायिक स्वतंत्रता” सिद्धांत की रक्षा करता है।

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निष्कर्ष

केंद्र सरकार द्वारा किया गया यह व्यापक न्यायिक फेरबदल न केवल संवैधानिक प्रक्रिया का परिणाम है, बल्कि यह भारत की न्यायिक संरचना के संतुलन और कार्यप्रणाली को भी दर्शाता है।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और केंद्र सरकार के बीच यह संतुलित संवाद न्यायपालिका की अखंडता और जनता के भरोसे की नींव को और मजबूत करता है।

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