भूमि अधिग्रहण मुआवज़ा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा– मुआवज़ा निर्धारण में ‘सर्वोच्च बिक्री उदाहरण’ को तरजीह दी जाए, औसतन कीमत नहीं

How should compensation be calculated in land acquisition? Supreme Court clarified- the highest and authentic sales registry will be the basis

🚜 भूमि अधिग्रहण में मुआवज़े की गणना कैसे हो? सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया– सबसे ऊँची और प्रमाणिक बिक्री रजिस्ट्री ही होगी आधार

🔎 पृष्ठभूमि:

  • महाराष्ट्र के परभणी ज़िले में जिन्तूर शहर के पास किसानों की 89.44 हेक्टेयर भूमि 1990 के दशक में MIDC के लिए अधिग्रहीत की गई।
  • मूलतः ₹45.7 लाख का मुआवज़ा दिया गया, पर किसानों ने उसे चुनौती देते हुए सेक्शन 18 LA Act में रिफरेंस फाइल किया
  • रेफरेंस कोर्ट ने मामूली बढ़ोतरी की लेकिन हाईकोर्ट ने किसानों की अपील खारिज कर दी।
  • अब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।

🧑‍⚖️ सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

✅ सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह

“जब समान भूमि के कई बिक्री उदाहरण (sale exemplars) मौजूद हों, तो आमतौर पर सबसे अधिक कीमत वाले, यदि वह लेन-देन प्रमाणिक हो, को मुआवज़ा निर्धारण का आधार बनाना चाहिए।”

📌 औसत कीमत केवल तब लागू हो सकती है, जब सभी बिक्री उदाहरणों में कीमतों का अंतर मामूली हो।

⚠️ इस मामले में, बिक्री उदाहरणों की कीमतें ₹25,000 से ₹72,900 प्रति एकड़ तक थीं — यानी अंतर काफी ज़्यादा था, इसलिए औसतन मूल्य निर्धारण करना “कानून के अनुरूप नहीं” था।


💡 न्यायिक टिप्पणियाँ:

  • अधिग्रहीत भूमि की वास्तविक कीमत ही नहीं, बल्कि संभावित उपयोग (potential value) भी मुआवज़े में जोड़ी जानी चाहिए।
  • मुआवज़ा निर्धारण में अदालत ने यह भी माना कि चूंकि अधिग्रहीत भूमि का क्षेत्रफल बड़ा था, इसलिए 20% की कटौती करना उचित है।
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🧾 अंतिम आदेश:

🔹 ₹72,900 प्रति एकड़ के उच्चतम बिक्री उदाहरण को आधार मानते हुए,
🔹 20% की कटौती लागू कर
🔹 अंतिम मुआवज़ा ₹58,320 प्रति एकड़ तय किया गया (पूर्व के ₹32,000 प्रति एकड़ के बजाय)।

🟢 First Appeals Allowed | Bombay High Court का आदेश रद्द | Compensation Enhanced


⚖️ निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण मामलों में एक बार फिर दोहराया कि “बाजार मूल्य” केवल औसतन आंकड़ों से तय नहीं किया जा सकता, और “सबसे भरोसेमंद व उच्चतम कीमत वाले बिक्री दस्तावेज़” ही निर्णायक होंगे — जब तक कि समान लेन-देन में केवल हल्का मूल्य अंतर हो।

मामला: Manohar and Others v. State of Maharashtra and Others (2025 INSC 900)

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