सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से बदलाव दिख रहे हों तो अदालत को विशेषज्ञ की राय लेने की आवश्यकता नहीं है। 1984 के बिक्री समझौते में हुई फेरबदल को लेकर यह अहम फैसला लिया गया है।
Supreme Court’s decision: If the change in the document is clear, then expert opinion is not required
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: दस्तावेज़ में बदलाव स्पष्ट हो तो विशेषज्ञ की राय की आवश्यकता नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने 21 अगस्त 2025 को यह स्पष्ट किया कि यदि दस्तावेज़ पर बदलाव या फेरबदल स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हों, तो अदालत को विशेषज्ञों से राय लेने की आवश्यकता नहीं है। यह निर्णय एक ऐसे मामले में आया, जिसमें एक बिक्री समझौते में संपत्ति के विवरण में बदलाव पाया गया था।
मामले का पृष्ठभूमि
मामला 15 जुलाई 1984 के एक समझौते से संबंधित था, जिसमें 2.40 एकड़ भूमि को 56,000 रुपये में बेचने की बात की गई थी। समझौते में एक संपत्ति (Item No.1) का उल्लेख था, लेकिन बाद में दूसरी संपत्ति (Item No.2) को जोड़ने के लिए दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से इंक का अलग रंग इस्तेमाल किया गया। हाई कोर्ट ने इस बदलाव को स्वीकार किया और समझौते को अस्वीकृत कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया और कहा कि जब दस्तावेज़ में बदलाव स्पष्ट हों, तो विशेषज्ञ की राय लेने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने माना कि दस्तावेज़ की दृश्य परीक्षा ही पर्याप्त थी, और उसने यह भी कहा कि अगर बदलाव स्पष्ट हो, तो अदालत इसे अपने स्तर पर निपटा सकती है।
मुख्य बिंदु:
- दृश्य परीक्षा पर्याप्त है: कोर्ट ने साफ किया कि जब बदलाव आंखों से देखे जा सकते हैं, तो विशेषज्ञों की राय की जरूरत नहीं है।
- विशेषज्ञ राय की अनिवार्यता नहीं: दस्तावेज़ में बदलाव स्पष्ट होने पर अदालत को विशेषज्ञों से राय लेने की आवश्यकता नहीं।
- दस्तावेज़ की विश्वसनीयता पर प्रभाव: जब समझौते में स्पष्ट बदलाव हो, तो उसकी विश्वसनीयता प्रभावित होती है और पक्षकार इसका दावा नहीं कर सकते।
- स्वतंत्रता और पारदर्शिता: दस्तावेज़ पर स्पष्ट हस्ताक्षर और फेरबदल को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने समझौते को अस्वीकृत किया।
इस फैसले से यह सिद्ध हुआ कि अदालतों को अब ऐसे मामलों में केवल दस्तावेज़ की दृश्य परीक्षा करने का अधिकार होगा और वे विशेषज्ञों की राय की अनिवार्यता से मुक्त होंगी।
मामला शीर्षक: Syed Basheer Ahmed v. M/s Tinni Laboratories Private Limited & Anr.
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