हिमाचल हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: मंदिर का दान ‘देवता की संपत्ति’ है, न कि सरकार की

हिमाचल हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: मंदिरों के दान केवल धार्मिक व धर्मार्थ कार्यों में ही इस्तेमाल होंगे, सरकारी योजनाओं में नहीं

कोर्ट ने अपने विस्तृत आदेश में हिंदू धर्म के दार्शनिक मूल्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि धर्म “जीवन जीने की एक पद्धति है” जो करुणा, समानता और ज्ञान पर आधारित है।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मंदिरों में चढ़ाया गया दान केवल धार्मिक और धर्मार्थ कार्यों में ही खर्च किया जा सकता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि मंदिर निधि पर सरकार का कोई अधिकार नहीं है और उसका दुरुपयोग ‘आस्था से विश्वासघात’ है।

मंदिर निधि का दुरुपयोग ‘आस्था से विश्वासघात’: हिमाचल हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए स्पष्ट कर दिया कि मंदिरों में चढ़ाए गए दान और निधि का उपयोग केवल धार्मिक और धर्मार्थ कार्यों में ही किया जा सकता है, न कि सरकारी योजनाओं, सार्वजनिक ढांचों या अन्य कल्याणकारी कार्यों के लिए।

यह फैसला न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति राकेश काइनथला की खंडपीठ ने कश्मीर चंद शड्याल की याचिका पर सुनाया, जिसमें उन्होंने हिमाचल प्रदेश हिंदू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान और चैरिटेबल एंडोमेंट्स एक्ट, 1984 के कठोर अनुपालन की मांग की थी।


“दान देवता का होता है, सरकार का नहीं” — कोर्ट

अपने आदेश में अदालत ने कहा कि मंदिर का दान ‘देवता की संपत्ति’ है, न कि सरकार की
अदालत ने कहा —

“जब सरकार इन पवित्र निधियों का उपयोग अपने उद्देश्यों के लिए करती है, तो यह केवल दान का दुरुपयोग नहीं, बल्कि धार्मिक विश्वास का विश्वासघात है।”

खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि मंदिर निधियों का राज्य के सामान्य राजस्व के रूप में उपयोग या असंबंधित सार्वजनिक परियोजनाओं में व्यय संविधान और धर्म दोनों की भावना के विपरीत है।

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धर्म, दान और संविधान का संतुलन

कोर्ट ने अपने विस्तृत आदेश में हिंदू धर्म के दार्शनिक मूल्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि धर्म “जीवन जीने की एक पद्धति है” जो करुणा, समानता और ज्ञान पर आधारित है।
अदालत ने राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानंद और डॉ. भीमराव अंबेडकर जैसे सुधारकों का उल्लेख करते हुए कहा कि जाति, पंथ या लिंग के आधार पर भेदभाव ‘सच्चे धर्म’ के विपरीत है।

कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 25(2) का हवाला देते हुए कहा कि सरकार धार्मिक संस्थाओं के ‘धर्मनिरपेक्ष प्रशासनिक पहलुओं’ को विनियमित कर सकती है, लेकिन दान राशि को सरकारी धन के रूप में नहीं ले सकती

“मंदिरों में भक्तों द्वारा चढ़ाया गया धन पवित्र है और उसे केवल धर्मसंगत कार्यों में ही व्यय किया जाना चाहिए,” — अदालत ने कहा।


किन कार्यों में हो सकता है मंदिर निधि का उपयोग

कोर्ट ने 1984 के अधिनियम की धारा 17 का हवाला देते हुए मंदिर निधि के उपयोग के दायरे को स्पष्ट किया।
अनुमत कार्यों में शामिल हैं —

  • धार्मिक एवं शैक्षणिक गतिविधियाँ
  • धर्मार्थ एवं परोपकारी कार्य
  • सांस्कृतिक संरक्षण और संवर्धन
  • आपदा राहत कार्य

वहीं, अदालत ने निम्न कार्यों के लिए मंदिर निधि के उपयोग पर स्पष्ट रोक लगाई —

  • सड़कों, पुलों या गैर-धार्मिक भवनों का निर्माण
  • सरकारी योजनाओं या निजी उद्यमों को फंडिंग
  • अधिकारियों के लिए उपहार, वाहन या वीआईपी प्रसाद वितरण

पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए कड़े निर्देश

हाईकोर्ट ने सभी मंदिरों को निर्देश दिया कि वे अपनी मासिक आय, व्यय और ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से नोटिस बोर्ड या आधिकारिक वेबसाइटों पर प्रदर्शित करें।
जहां दुरुपयोग पाया जाएगा, वहां उत्तरदायी ट्रस्टी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे और उनसे राशि की वसूली की जाएगी।

“हर मंदिर को वार्षिक लेखा परीक्षा करानी होगी और परिणाम सार्वजनिक करने होंगे,” — अदालत ने आदेश दिया।


राज्य सरकार को आदेश: पारदर्शिता के साथ लागू करें निर्देश

अंत में, अदालत ने हिमाचल प्रदेश सरकार और सभी मंदिर प्रशासनिक निकायों को आदेश दिया कि वे इन दिशानिर्देशों को पूरी निष्ठा और पारदर्शिता के साथ लागू करें तथा यह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक रुपया धार्मिक उद्देश्य के लिए ही खर्च हो।

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निष्कर्ष

हिमाचल हाईकोर्ट का यह फैसला भारतीय न्यायपालिका में धार्मिक निधियों की पवित्रता और प्रशासनिक पारदर्शिता को लेकर एक नई मिसाल कायम करता है।
यह निर्णय न केवल मंदिर प्रशासन में जवाबदेही और नैतिक अनुशासन को सुदृढ़ करेगा, बल्कि धर्म और शासन के बीच संवैधानिक संतुलन को भी मजबूती प्रदान करेगा।

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