कर्नाटक हाईकोर्ट: धर्म परिवर्तन कानून के तहत दर्ज FIR रद्द, कोर्ट ने शिकायतकर्ता की वैधता पर उठाए सवाल

Karnataka High Court: FIR registered under religious conversion law quashed, court raised questions on the validity of the complainant

कर्नाटक हाईकोर्ट ने धार्मिक प्रचार पर दर्ज आपराधिक मामला किया रद्द, शिकायतकर्ता को बताया अयोग्य

कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वेंकटेश नाइक टी की एकल पीठ ने Mustafa v. The State (Criminal Petition No. 101905 of 2025) मामले में अहम फैसला सुनाया। अदालत ने इस्लाम धर्म के प्रचार हेतु पर्चे बांटने को लेकर दर्ज FIR को रद्द कर दिया। FIR में आरोप था कि आरोपियों ने रमतीर्थ मंदिर में इस्लाम धर्म का प्रचार किया और हिंदू धर्म की आलोचना की।

हालांकि कोर्ट ने माना कि न तो कोई धर्म परिवर्तन किया गया और न ही इसका कोई प्रयास सिद्ध होता है। साथ ही कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता को Karnataka Protection of Right to Freedom of Religion Act, 2022 (KPRFR Act) के तहत शिकायत दर्ज कराने का वैधानिक अधिकार (locus standi) ही नहीं था।

मामला क्या था?

4 मई 2025 को रमतीर्थ मंदिर में शिकायतकर्ता ने कुछ व्यक्तियों को इस्लाम धर्म के प्रचार संबंधी पर्चे बांटते देखा। उनके अनुसार, आरोपियों ने न केवल हिंदू धर्म की आलोचना की बल्कि धमकी भी दी कि “अगर कोई रोकेगा तो जान से नहीं बख्शेंगे।” आरोप यह भी था कि आरोपियों ने वाहन, नौकरी, व अन्य लालच देकर धर्म परिवर्तन के लिए लोगों को आकर्षित करने की कोशिश की।

इसके आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसमें आरोपियों पर भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धाराएं 299, 351(2), 3(5) और KPRFR Act की धारा 5 के अंतर्गत अपराध दर्ज किए गए थे।

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कोर्ट का विश्लेषण

1. शिकायतकर्ता की वैधता (Locus Standi):

कोर्ट ने सबसे पहले यह स्पष्ट किया कि KPRFR Act की धारा 4 के तहत केवल वही व्यक्ति शिकायत दर्ज कर सकता है जिसे धर्मांतरित किया गया हो या उसके नजदीकी परिजन — जैसे माता-पिता, भाई-बहन, जीवनसाथी आदि। इस मामले में शिकायतकर्ता न तो धर्मांतरित व्यक्ति था, न ही उससे किसी तरह का पारिवारिक संबंध था। अतः उसकी ओर से दर्ज FIR अवैध करार दी गई।

2. आरोपों का मूल्यांकन:

कोर्ट ने यह भी देखा कि FIR में आरोप चाहे जैसे भी हों, धारा 3 के तहत आवश्यक तत्वों — जैसे बल, धोखा, प्रलोभन, ज़बरदस्ती या विवाह का झांसा देकर धर्म परिवर्तन — का कोई ठोस आरोप सामने नहीं आया। केवल धर्म प्रचार या धार्मिक विचार रखना, जब तक वो अवैध माध्यमों से न हो, कानूनन अपराध नहीं है।

3. BNS के प्रावधानों पर टिप्पणी:

भारतीय न्याय संहिता की धाराएं 299 (जान से मारने की धमकी), 351(2) (दंगा भड़काना), और 3(5) (साजिश) की भी प्राथमिक शर्तें पूरी नहीं हुईं, क्योंकि कोई हिंसा, घातक हमला या साजिश का ठोस प्रमाण FIR में नहीं था।

निर्णय:

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि FIR का पंजीकरण न केवल लोकस स्टैंडी के अभाव में अवैध था, बल्कि आरोपों की प्रथम दृष्टया पुष्टि भी नहीं होती। अतः कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ FIR को रद्द कर दिया।

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