Demand for protection from sexual harassment in political parties: New petition in Supreme Court, demand for mandatory implementation of POSH law
अधिवक्ता योगमाया एम.जी. ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए एक महत्वपूर्ण याचिका दाखिल की है, जिसमें देश के सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को POSH अधिनियम, 2013 (कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम) के दायरे में लाने की मांग की गई है।
याचिका में आग्रह किया गया है कि शीर्ष अदालत ऐसे निर्देश दे, जिनके तहत हर राजनीतिक दल के कार्यालय और इकाई में आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य किया जाए, ताकि महिला कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवकों, कर्मचारियों और इंटर्न्स को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा मिल सके।
🔹 “राजनीतिक दलों को छूट देना असंवैधानिक”
याचिका में कहा गया है कि अब तक राजनीतिक दल POSH अधिनियम की वैधानिक व्यवस्था से बाहर रहे हैं, जिससे उन संस्थाओं में कार्यरत या संबंधित महिलाओं को शिकायत दर्ज कराने का कोई संस्थागत मंच नहीं मिलता। इससे महिलाओं के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव का निषेध) और 21 (जीवन और गरिमा का अधिकार) का उल्लंघन होता है।
🔹 सुप्रीम कोर्ट से पहले दखल का प्रयास
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि इसी मुद्दे पर याचिकाकर्ता ने पूर्व में W.P.(C) No. 816/2024 दाखिल की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 09 दिसंबर 2024 को यह कहते हुए निपटा दिया था कि याचिकाकर्ता निर्वाचन आयोग को अभ्यावेदन दे। तदनुसार, याचिकाकर्ता ने 17 मार्च 2025 को एक विवेचना प्रस्तुत की, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला, जिससे वर्तमान रिट याचिका दाखिल करनी पड़ी।
🔹 केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती
याचिका में केरल हाईकोर्ट के निर्णय Centre for Constitutional Rights Research and Advocacy v. State of Kerala (2022) की आलोचना की गई है, जिसमें यह कहा गया था कि राजनीतिक दलों में औपचारिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध न होने के कारण POSH अधिनियम लागू नहीं होता। याचिकाकर्ता ने इसे “कानून की संकीर्ण व्याख्या” बताते हुए कहा है कि इससे संगठित राजनैतिक संरचनाओं में महिलाओं को सुरक्षा नहीं मिलती और उत्पीड़कों को संरक्षित किया जाता है।
🔹 “राजनीतिक दल केवल निजी संस्था नहीं”
याचिका में इस बात पर बल दिया गया है कि राजनीतिक दल महज निजी निकाय नहीं, बल्कि सार्वजनिक संस्थाएं हैं, जो शासन, नीति निर्माण, लोकतांत्रिक भागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट, 1951 के तहत मान्यता प्राप्त है और सरकारी संसाधनों, कर छूट, और सरकारी सुविधाओं का लाभ प्राप्त करते हैं। अतः उन्हें संवैधानिक उत्तरदायित्वों के अधीन रखा जाना चाहिए।
🔹 अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का भी हवाला
याचिका में भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का भी उल्लेख है, विशेषकर CEDAW, ICCPR, और संयुक्त राष्ट्र व अंतर-संसदीय संघ द्वारा राजनीतिक स्थानों में यौन उत्पीड़न के विरुद्ध सक्रिय उपाय अपनाने की अनुशंसाओं का हवाला दिया गया है।
🧾 याचिका में मांगे गए मुख्य राहत:
- POSH अधिनियम, 2013 को राजनीतिक दलों पर लागू घोषित करने हेतु मैंडमस जारी किया जाए।
- Vishaka v. State of Rajasthan (1997) के निर्देशों और POSH अधिनियम के तहत गंभीर शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना के आदेश दिए जाएं।
- राजनीतिक दलों को “नियोक्ता” घोषित कर, POSH अधिनियम की धारा 2(g) और 2(f) के तहत ICC गठन को अनिवार्य किया जाए।
🏛️ मामला:
Yogamaya M.G. बनाम भारत संघ व अन्य (Diary No. 39052/2025)
