तेलंगाना उच्च न्यायालय: गोला-बारूद की बरामदगी मात्र से शस्त्र अधिनियम के तहत आरोप सिद्ध नहीं

Telangana High Court: Mere recovery of ammunition does not prove charge under Arms Act

तेलंगाना उच्च न्यायालय ने करण सजनानी बनाम तेलंगाना राज्य मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें उसने शस्त्र अधिनियम, 1959 (अधिनियम) के तहत एक व्यक्ति को आरोपमुक्त कर दिया। याचिकाकर्ता के पास केवल गोला-बारूद की बरामदगी के आधार पर आरोप नहीं लगाए जा सकते, जब तक यह साबित न हो कि उसे गोला-बारूद रखने का सचेत कब्जा और मानसिक इरादा था।


📝 पृष्ठभूमि:

  • याचिकाकर्ता ने अपने दोस्त से जन्मदिन पर 380 कारतूस उपहार में प्राप्त किए थे।
  • हवाई अड्डे पर सुरक्षा जांच के दौरान उसके बैग से कारतूस बरामद हुए।
  • शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25(1)(ए) और 25(1ए) के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
  • मजिस्ट्रेट ने आरोपमुक्ति के लिए याचिका को खारिज किया, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की।

‘सचेत कब्जा’ और mens rea की व्याख्या:

  • ‘कब्ज़ा’ का अर्थ शस्त्र अधिनियम Arms Act की धारा 25 के अंतर्गत मात्र भौतिक अधिपत्य नहीं है, बल्कि वह जानबूझकर और सचेत होना चाहिए।
  • धारा 25(1)(a) और 25(1A) तभी लागू होती हैं जब आरोपी के पास न केवल वस्तु हो, बल्कि उसके कब्जे की जानकारी और इरादा भी हो।
  • यह सिद्ध करना अभियोजन का दायित्व है कि आरोपी को उक्त गोला-बारूद की प्रकृति और अनाधिकृतता की जानकारी थी।

न्यायालय द्वारा उद्धृत सिद्धांत:

  • भारतीय आपराधिक कानून के अंतर्गत दंडनीय अपराध तभी बनता है जब दो तत्व साथ हों:
  • actus reus (अवैध कार्य)
  • mens rea (दोषपूर्ण मानसिक अवस्था)
  • केवल actus reus—यहाँ, कारतूस की उपस्थिति—पर अपराध नहीं बनता जब तक कि mens rea भी प्रमाणित न हो।
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⚖️ न्यायालय का विश्लेषण:

  • न्यायालय ने कहा कि शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25(1)(ए) और 25(1ए) के तहत आरोप सिद्ध करने के लिए, यह आवश्यक है कि आरोपी का कब्जा सचेतन हो। केवल गोला-बारूद की बरामदगी से आरोप साबित नहीं होते।
  • इसके लिए आरोपी के पास सचेत कब्जा होने के साथ-साथ उसे इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि वह गोला-बारूद रखे हुए है, और इसके लिए मानसिक इरादा होना चाहिए।
  • इस मामले में, याचिकाकर्ता के पास गोला-बारूद रखने का कोई जानबूझकर इरादा या सचेत कब्जा साबित नहीं हुआ। अभिलेखों में ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं था जो यह दर्शाता हो कि याचिकाकर्ता को गोला-बारूद रखने का ज्ञान था।

🔑 निर्णय:

  • न्यायालय ने कहा कि बिना सचेत कब्जा और मानसिक इरादा के, केवल गोला-बारूद की बरामदगी को शस्त्र अधिनियम के तहत अपराध मानना कानूनी रूप से अपर्याप्त था।
  • न्यायालय ने मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को आरोपमुक्त कर दिया।

📜 न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणी:

  • “सचेत कब्जा” का सिद्धांत इस प्रकार है कि व्यक्ति को जो चीज़ मिलती है, उसे जानबूझकर अपने पास रखता है, और उसके पास सचेत रूप से उस वस्तु के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
  • यदि इस प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं, तो अपराधीकरण नहीं हो सकता है और कानूनी कार्रवाई को समाप्त करना सही होता है।

करण सजनानी बनाम तेलंगाना राज्य, आपराधिक पुनरीक्षण प्रकरण संख्या 2309/2019

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