Himachal High Court: In a drug case, mere presence cannot be linked to the crime
📰 आकस्मिक उपस्थिति भर से हिरासत नहीं दी जा सकती: एनडीपीएस केस में हिमाचल हाईकोर्ट से ज़मानत
विधि संवाददाता
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS Act) की धारा 21 और 29 के तहत दर्ज एक एफआईआर FIR में आरोपी को ज़मानत प्रदान की है।
न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की एकल पीठ ने यह स्पष्ट किया कि पुलिस को किसी आरोपी को अपराध से जोड़ने के लिए ठोस आधार प्रस्तुत करना होगा, और केवल किसी की मौजूदगी के आधार पर उसकी हिरासत को उचित नहीं ठहराया जा सकता।
📚 मामला क्या था?
- दिनांक: 8 जुलाई 2025
- समय: शाम 4:45 बजे
- पुलिस को गश्त के दौरान सूचना मिली कि दो लोग अपने घर से हेरोइन बेच रहे हैं। तलाशी में 45.350 ग्राम हेरोइन, ₹44,000 नकद और एक जला हुआ करेंसी नोट बरामद हुआ।
- महेश ठाकुर (याचिकाकर्ता) उस वक्त सह-अभियुक्त के घर पर मौजूद था और उसी आधार पर गिरफ्तार किया गया।
- एफएसएल रिपोर्ट लंबित है, जबकि पूछताछ में दोनों ने कबूला कि वे नशे के आदी हैं।
⚖️ याचिकाकर्ता की दलीलें:
- वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता केवल एक आकस्मिक आगंतुक था और बरामदगी सह-अभियुक्त के घर से हुई थी।
- ‘शुभम बिटालू बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य’ में यह तय किया गया था कि केवल उपस्थिति भर से जमानत रोकी नहीं जा सकती।
⚖️ सरकार की आपत्ति:
- अतिरिक्त महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता का आपराधिक इतिहास है और उसके रक्त के नमूने एफएसएल FSL को भेजे गए हैं।
- अगर उसे ज़मानत दी गई, तो वह दोबारा ऐसा अपराध कर सकता है।
🔍 कोर्ट का विश्लेषण:
न्यायालय ने कहा:
- याचिकाकर्ता की घर में मौजूदगी मात्र से यह साबित नहीं होता कि वह अपराध में शामिल था।
- कबूलनामा, जो पुलिस को पूछताछ में दिया गया, NDPS अधिनियम की धारा 67 के अंतर्गत संरक्षित नहीं है और साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के अधीन आता है — जैसा कि ‘तोफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य’ (2021) में कहा गया।
- ‘सुरिंदर कुमार खन्ना बनाम राजस्व खुफिया निदेशालय’ (2018) के अनुसार, सह-अभियुक्त का कबूलनामा दूसरे आरोपी के खिलाफ स्वतंत्र साक्ष्य नहीं हो सकता।
🔒 रक्त नमूना और आपराधिक इतिहास:
- कोर्ट ने माना कि रक्त में हेरोइन की मौजूदगी का अनुमान मात्र कोई ठोस आधार नहीं है हिरासत के लिए।
- आपराधिक इतिहास तब ही प्रासंगिक होता जब अभियोजन पक्ष प्रथम दृष्टया अपराध से जोड़ने का प्रमाण पेश करता।
🏛️ निर्णय:
“पुलिस को व्यक्ति को अपराध से जोड़ने के लिए ठोस प्रमाण देने होंगे। मात्र मौजूदगी या अनुमान के आधार पर व्यक्ति को हिरासत में नहीं रखा जा सकता।”
- ज़मानत मंज़ूर की गई — ₹1,00,000 के बॉन्ड Bond और समान राशि की जमानत राशि के अधीन।
📌 केस शीर्षक:
महेश ठाकुर बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, Cr. MP(M) संख्या 1706/2025
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