इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जज भी हाड़-मांस से बने नश्वर प्राणी हैं, और उनके भी मानवीय गुण होते हैं। कोर्ट ने अधीनस्थ न्यायाधीश के खिलाफ बिना पक्ष सुने की गई राज्य उपभोक्ता आयोग की अपमानजनक टिप्पणी हटाई। साथ ही, मऊ के तहसीलदार घोसी के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया। जानिए दोनों अहम आदेशों का पूरा विवरण।
इलाहाबाद हाईकोर्ट: “जज भी इंसान हैं, अधीनस्थों पर बिना सुने टिप्पणी न करें”
“इलाहाबाद हाईकोर्ट: जज भी इंसान हैं, अधीनस्थ न्यायाधीशों पर बिना सुनवाई टिप्पणी न करें” | Tehsildar Ghosi पर जारी हुआ जमानती वारंट
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि “जज भी हाड़-मांस से बने नश्वर प्राणी हैं”, उनमें भी मानवीय गुण रहते हैं। न्यायाधीश कानून के अनुसार न्याय करते हैं, और यदि उनके कार्यों पर कोई आपत्ति हो तो उन्हें सुनने का अवसर दिए बिना प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की एकलपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए शामली उपभोक्ता आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष हेमंत कुमार गुप्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। उन्होंने राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा गुप्ता की कार्यप्रणाली को लेकर की गई अपमानजनक टिप्पणियों को रिकॉर्ड से हटाने का आदेश दिया।
मामला क्या था?
याची हेमंत कुमार गुप्ता, जो उस समय शामली उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष थे, ने Reliance Retail Ltd. और भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) से संबंधित शिकायतों पर निर्णय दिया था। इन मामलों की अपील राज्य उपभोक्ता आयोग में गई, जहां आयोग ने गुप्ता की कार्यप्रणाली पर व्यक्तिगत और अनुचित टिप्पणी कर दी।
गुप्ता ने इन टिप्पणियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। याची ने बताया कि अपने कार्यकाल में उन्होंने लगभग 600 उपभोक्ता मामलों की सुनवाई की, जिनमें से केवल दो मामलों पर राज्य आयोग ने टिप्पणी की।
हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों में यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी अधीनस्थ न्यायिक अधिकारी पर बिना सुनवाई निजी टिप्पणी करना अनुचित है।
न्यायाधीश ने कहा —
“न्यायिक गरिमा बनाए रखना न्यायपालिका की जिम्मेदारी है। निष्पक्षता और न्यायहित में दी गई टिप्पणियाँ आदेश का हिस्सा हो सकती हैं, परंतु व्यक्तिगत टिप्पणी अनुचित है।”
इस प्रकार, कोर्ट ने राज्य उपभोक्ता आयोग की टिप्पणियाँ आदेश से हटाने का निर्देश दिया।
तहसीलदार घोसी के खिलाफ जमानती वारंट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अन्य मामले में मऊ जिले के तहसीलदार घोसी धर्मेंद्र कुमार पांडेय के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है।
न्यायमूर्ति दिनेश पाठक ने यह आदेश सत्यव्रत राय शास्त्री की अवमानना याचिका पर दिया। मामला मऊ की घोसी तहसील के बड़ागांव स्थित गाटा संख्या 987 (0.044 हेक्टेयर) भूमि से जुड़ा है, जो राजस्व अभिलेख में पोखरी (तालाब) के रूप में दर्ज है।
अतिक्रमण और आदेश की अवमानना
इस भूमि पर एक व्यक्ति ने अवैध कब्जा कर लिया था। तहसीलदार घोसी ने 31 अक्टूबर 2023 को अतिक्रमण हटाने का आदेश पारित किया, लेकिन उसका पालन नहीं हुआ। इसके बाद सत्यव्रत राय शास्त्री ने अवमानना याचिका दाखिल की।
कोर्ट ने पहले ही अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था और तहसीलदार को उपस्थित होने का निर्देश दिया गया था। बावजूद इसके, तहसीलदार पेश नहीं हुए। नतीजतन, हाईकोर्ट ने जमानती वारंट जारी करते हुए CJM मऊ को अगली सुनवाई (3 दिसंबर) को उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए।
निष्कर्ष
दोनों मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायिक अनुशासन और जवाबदेही की मिसाल कायम की है।
- एक ओर कोर्ट ने अधीनस्थ न्यायाधीशों की गरिमा और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत को दोहराया,
- वहीं दूसरी ओर, राजस्व अधिकारियों द्वारा आदेश की अवहेलना पर सख्त रुख अपनाते हुए न्यायिक आदेश की पवित्रता बनाए रखने का संकेत दिया।
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