सुप्रीम कोर्ट ने गायिका नेहा सिंह राठौर को राहत देने से इनकार करते हुए उनकी याचिका खारिज की। नेहा ने पहलगाम आतंकी हमले पर सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर दर्ज FIR रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा—“जाकर मुकदमे का सामना करें।”
सुप्रीम कोर्ट ने नेहा सिंह राठौर की याचिका खारिज की, सोशल मीडिया पोस्ट पर दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने नेहा सिंह राठौर को राहत देने से किया इनकार, कहा—“मुकदमे का सामना करें”
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को लोकप्रिय गायिका और गीतकार नेहा सिंह राठौर की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने उनके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की मांग की थी। यह FIR उनकी एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर दर्ज की गई थी, जिसमें उन्होंने पहलागाम आतंकी हमले पर सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की थी।
न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति कुलदीप बिश्नोई की दो-न्यायाधीशों वाली पीठ ने साफ कहा कि इस समय अदालत मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी। कोर्ट ने टिप्पणी की,
“आप जाकर मुकदमे का सामना करें। हम इस मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ पहुंची थीं नेहा राठौर
नेहा सिंह राठौर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 19 सितंबर 2025 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कोर्ट ने उनकी FIR रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि FIR में लगाए गए आरोपों की जांच होना आवश्यक है और इस स्तर पर अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में नेहा राठौर ने दलील दी थी कि उनके एक्स (X) (पूर्व में ट्विटर) पर किए गए पोस्ट को गलत संदर्भ में लेकर FIR दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि उनका मकसद किसी की धार्मिक भावनाएं भड़काना नहीं था बल्कि राजनीतिक व्यंग्य और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Article 19(1)(a)) के तहत अपनी राय देना था।
क्या था नेहा राठौर का विवादित पोस्ट
विवाद तब शुरू हुआ जब पहलागाम (जम्मू-कश्मीर) में हुए आतंकी हमले के बाद नेहा सिंह राठौर ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया।
उन्होंने लिखा था कि प्रधानमंत्री मोदी “हमले के तुरंत बाद बिहार आते हैं ताकि पाकिस्तान को धमका सकें और राष्ट्रवाद के नाम पर वोट बटोर सकें।”
पोस्ट में उन्होंने यह भी लिखा कि
“आतंकियों को पकड़ने और अपनी नीतिगत गलती मानने के बजाय बीजेपी देश को युद्ध की तरफ धकेलना चाहती है।”
इस पोस्ट के बाद लखनऊ के हजरतगंज पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ अप्रैल 2025 में एफआईआर दर्ज की गई। शिकायतकर्ता अभय प्रताप सिंह ने आरोप लगाया कि राठौर ने सोशल मीडिया के माध्यम से बार-बार धार्मिक आधार पर समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने की कोशिश की और देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डाला।
FIR में दर्ज धाराएं और पुलिस का पक्ष
एफआईआर में नेहा राठौर पर आईपीसी IPC की विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ है — जिनमें धारा 153A (समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाना), धारा 505(2) (अफवाह या भड़काऊ बयान) और धारा 124A (देशद्रोह/संप्रभुता को खतरा) शामिल हैं।
पुलिस का कहना है कि नेहा का यह पोस्ट न केवल भड़काऊ था बल्कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक शांति को खतरा हो सकता था। जांच एजेंसियों के अनुसार, उनके खिलाफ डिजिटल साक्ष्य इकट्ठे किए जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर उनकी गतिविधियों की निगरानी की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: ‘कोई हस्तक्षेप नहीं’
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अभी यह हस्तक्षेप का सही समय नहीं है। कोर्ट ने कहा कि FIR के रद्द करने का सवाल जांच पूरी होने से पहले नहीं उठाया जा सकता।
पीठ ने कहा,
“हम इस चरण में कोई राय नहीं देना चाहते। यह मामला जांच एजेंसी और ट्रायल कोर्ट के स्तर पर तय होगा।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिका खारिज होने का मतलब यह नहीं कि नेहा राठौर दोषी हैं। यह केवल यह दर्शाता है कि जांच की प्रक्रिया को बाधित नहीं किया जा सकता।
कानूनी विश्लेषण: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम आपराधिक जिम्मेदारी
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला एक बार फिर ‘फ्री स्पीच बनाम हेट स्पीच Free Speech vs Hate Speech’ की बहस को सामने लाता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह संकेत मिलता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार पूर्ण नहीं है और अगर कोई बयान समाज में तनाव या हिंसा फैलाने की क्षमता रखता है, तो जांच एजेंसियों को जांच करने का पूरा अधिकार है।
हालांकि, यह भी सच है कि कलाकारों और नागरिकों की आलोचनात्मक अभिव्यक्ति को भी संरक्षित रखना लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। नेहा राठौर अब अपने बचाव में ट्रायल कोर्ट में पेश होंगी और यह मामला इस बात की नई कसौटी बनेगा कि सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की सीमाएँ आखिर कहां तक हैं।
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