सुप्रीम कोर्ट ने आईएमए की भ्रामक विज्ञापन संबंधी याचिका निपटाई, अंतरिम आदेश हटाया

सुप्रीम कोर्ट ने आईएमए की भ्रामक विज्ञापन संबंधी याचिका निपटाई, अंतरिम आदेश हटाया

Supreme Court disposes of IMA’s plea on misleading advertisement, lifts interim order

सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की उस जनहित याचिका को निपटा दिया है, जिसमें एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के खिलाफ कथित भ्रामक विज्ञापनों और बयानों पर रोक लगाने की मांग की गई थी।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि याचिका में मांगी गई राहत पहले ही मिल चुकी है, इसलिए अब मामले को बंद किया जा रहा है।

पीठ ने स्पष्ट किया कि Rule 170 की समाप्ति से संबंधित कोई भी विवाद हाई कोर्ट में उठाया जा सकता है। अदालत ने 27 अगस्त 2024 के अपने अंतरिम स्थगन आदेश को भी रद्द कर दिया, जिससे आयुष मंत्रालय की 1 जुलाई 2024 की अधिसूचना (Rule 170 की समाप्ति) पर लगी रोक हट गई।

सुनवाई के दौरान, अमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता शादन फरासत ने status quo बनाए रखने का आग्रह किया, जिस पर न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि अदालत न तो कानून बना सकती है और न ही समाप्त किए गए प्रावधान को पुनर्जीवित कर सकती है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि आयुर्वेद में रोगों के इलाज का दावा करने वाले विज्ञापन मरीजों को गुमराह कर रहे हैं, जिससे वे गंभीर अवस्था में एलोपैथिक डॉक्टर तक पहुंचते हैं। इस पर न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, “जब तक निर्माण की अनुमति है, तब तक बाद में रोक नहीं लगाई जा सकती।”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसके लिए वैधानिक तंत्र मौजूद है। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वह केवल एक प्लेटफ़ॉर्म (WhatsApp, Facebook) हैं, विज्ञापनदाता नहीं, इसलिए उन्हें मुकदमे में घसीटना गलत होगा। फरासत ने इस पर सहमति जताई।

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पृष्ठभूमि:

  • 10 फरवरी और 24 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों को फटकार लगाते हुए भ्रामक विज्ञापनों पर रोक के आदेशों के अनुपालन की समीक्षा की थी।
  • 13 अगस्त 2024 को बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के एमडी आचार्य बालकृष्ण को जारी अवमानना नोटिस वापस लिए गए, हालांकि उन्हें भविष्य में आदेश उल्लंघन न करने की चेतावनी दी गई।
  • मई 2024 में आईएमए अध्यक्ष डॉ. आर.वी. असोकरन की माफ़ी अदालत ने अस्वीकार कर दी थी और उनसे सार्वजनिक माफ़ी की मांग की थी।

शीर्षक: Indian Medical Association v. Union Of India [W.P.(C) No. 645/2022]

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