तिस हजारी कोर्ट: मध्यस्थ के आदेश में दखल से इंकार, सत्याॅम पॉलीनिट्स की अपील खारिज

तिस हजारी कोर्ट ने धारा 37(2)(b) के तहत दायर सत्याॅम पॉलीनिट्स की अपील खारिज की। कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थ के आदेश में कोई त्रुटि या मनमानी नहीं है और न्यायिक हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता। मामला Satyam Polyknits v. Excel Vinyl Coatings Pvt Ltd से संबंधित है।

तिस हजारी कोर्ट: मध्यस्थ के आदेश में दखल से इंकार, सत्याॅम पॉलीनिट्स की अपील खारिज


Legal Today Report: तिस हजारी कोर्ट ने Arbitration and Conciliation Act, 1996 की धारा 37(2)(b) के तहत दाखिल सत्याॅम पॉलीनिट्स की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थ (Arbitrator) द्वारा पारित आदेश में कोई ऐसी कानूनी या प्रक्रिया संबंधी त्रुटि नहीं थी, जो न्यायिक हस्तक्षेप को उचित ठहरा सके


मामले की पृष्ठभूमि

  • एक्सेल विनाइल कोटिंग्स प्रा. लि. ने सत्याॅम पॉलीनिट्स से फैब्रिक सामग्री की सप्लाई ली थी।
  • भुगतान को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ और मामला मध्यस्थता (arbitration) में चला गया।
  • सत्याॅम ने धारा 17(1)(b) के तहत मध्यस्थ से मांग की थी कि एक्सेल को ₹30.22 लाख की राशि की सुरक्षा (बैंक गारंटी या अन्य वित्तीय साधन) देने का निर्देश दिया जाए।
  • मध्यस्थ गरिमा बजाज ने यह आवेदन अस्वीकार कर दिया।

हाईकोर्ट में अपील और तर्क

सत्याॅम ने धारा 37(2)(b) के तहत तिस हजारी कोर्ट में अपील दाखिल की और मध्यस्थ के आदेश को चुनौती दी।

जस्टिस रवीन्द्र बेदी की पीठ ने कहा:

  • मध्यस्थ पार्टियों की पसंद का जज होता है और उसका विवेकाधिकार (discretion) तभी पलटा जा सकता है जब आदेश मनमाना, तर्कहीन या विधि-विरुद्ध हो।
  • कोर्ट को मध्यस्थ के निष्कर्षों पर दोबारा सुनवाई करने या तथ्यों का पुनर्मूल्यांकन करने का अधिकार नहीं है।
  • यदि मध्यस्थ ने prima facie case, balance of convenience और irreparable injury की कसौटी पर विचार कर आदेश दिया है, तो उस पर दखल नहीं किया जा सकता।
  • सत्याॅम ने आवेदन बहुत देर से दाखिल किया था, जब मामला जिरह (cross-examination) की प्रक्रिया में था।
ALSO READ -  अदालत ने दो लोगों को दंगा करने और तोड़फोड़ अभियान चला रहे सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने के आरोप में दोषी ठहराया

कोर्ट का फैसला

  • कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनीं और ठोस कारणों के आधार पर आदेश दिया।
  • आदेश में कोई पारदर्शिता की कमी, मनमानी या पक्षपात नहीं दिखा।
  • सुप्रीम कोर्ट के Managing Director, Army Welfare Housing Organisation v. Sumangal Services (P) Ltd. (2004) 9 SCC 619 फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि धारा 37(2)(b) के तहत हस्तक्षेप का दायरा और भी सीमित है।

अंततः कोर्ट ने कहा कि अपील में कोई दम नहीं है और इसे खारिज कर दिया।


Tags:
#तिसहजारीकोर्ट #ArbitrationAct1996 #धारा37 #SatyamPolyknits #ExcelVinyl #ArbitrationAppeal #InterimRelief #BankGuarantee #LegalNews #ArbitratorOrder

Leave a Comment