केरल हाईकोर्ट ने सबरीमाला मंदिर से सोने की द्वारपालक मूर्तियाँ हटाने और 4 किलो सोना कम होने के मामले में न्यायिक जांच के आदेश दिए। अधिवक्ता कृष्णराज ने देवस्वोम बोर्ड और कम्युनिस्ट नेताओं पर मंदिरों को नष्ट करने की साज़िश का आरोप लगाया।
सबरीमाला मंदिर विवाद: सोने की द्वारपालक मूर्ति हटाने पर केरल हाईकोर्ट ने न्यायिक जांच के आदेश दिए
तिरुवनंतपुरम, 30 सितम्बर 2025 – Gold Plating Scam – केरल हाईकोर्ट ने सबरीमाला मंदिर से सोने की परत चढ़ी ‘द्वारपालक’ मूर्तियों को हटाने और रिप्लेटिंग के दौरान लगभग चार किलो सोना कम पाए जाने के मामले में न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं। अदालत ने इसे मंदिर प्रबंधन और त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड की गंभीर लापरवाही बताते हुए कहा कि ऐसी घटनाएँ धार्मिक आस्था और पारदर्शिता पर सीधा प्रहार हैं।
हाईकोर्ट का आदेश और टिप्पणियाँ
जस्टिस राजा विजयराघवन वी और जस्टिस केवी जयकुमार की खंडपीठ ने कहा कि देवस्वोम बोर्ड ने बिना अदालत या विशेष आयुक्त को सूचित किए मूर्तियों की सोने की परत हटवाई और रिप्लेटिंग का काम चेन्नई की Smart Creations कंपनी को सौंपा।
अदालत ने पाया कि रिप्लेटिंग के बाद सोने का वजन चार किलो कम पाया गया। कोर्ट ने कहा:
“देवस्वोम बोर्ड को चाहिए था कि वह मंदिर से जुड़े प्रत्येक निर्णय में पारदर्शिता रखे। लेकिन इस मामले में बिना अनुमति और सूचना के की गई कार्रवाई गंभीर संदेह पैदा करती है।”
इसके साथ ही, अदालत ने चीफ विजिलेंस और सिक्योरिटी ऑफिसर (SP, त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड) को विस्तृत जांच का आदेश दिया और देवस्वोम बोर्ड को सहयोग करने का निर्देश दिया।
विवाद की पृष्ठभूमि
- 1999 में सबरीमाला मंदिर में द्वारपालक मूर्तियाँ स्थापित की गईं।
- 2019 में प्रायोजक उन्नीकृष्णन पोट्टी के अनुरोध पर रिप्लेटिंग का कार्य कराया गया।
- सोने की परत चढ़ाने का ठेका Smart Creations (चेन्नई) को दिया गया।
- काम पूरा होने पर मूर्तियों का सोना पहले से चार किलो कम पाया गया।
- यह तथ्य विशेष आयुक्त की रिपोर्ट के जरिए सामने आया, जिसके बाद मामला अदालत तक पहुँचा।
कोर्ट में हुई सुनवाई
- राज्य की ओर से सीनियर गवर्नमेंट प्लीडर एस. राजमोहन ने पैरवी की।
- देवस्वोम बोर्ड का पक्ष अडवोकेट जी. बीजू ने रखा।
- सबरीमाला स्पेशल कमिश्नर के लिए अमाइकस क्यूरी सयुज्या राधाकृष्णन उपस्थित हुईं।
- प्रायोजक उन्नीकृष्णन पोट्टी की ओर से आर. सुधीश और एम. मञ्जु ने पक्ष रखा।
कोर्ट ने कहा कि मामला केवल सोने की चोरी या लापरवाही का नहीं है बल्कि यह धार्मिक संस्थानों की पारदर्शिता और जनता के विश्वास से भी जुड़ा है।
एडवोकेट कृष्णराज की प्रतिक्रिया
अदालत के आदेश के बाद अधिवक्ता कृष्णराज ने कहा:

“यह बेहद गंभीर मामला है। सोने की द्वारपालक मूर्तियाँ बिना अदालत की अनुमति और बिना किसी को बताए हटाई गईं। यह चार साल पहले हुआ और अब जाकर सामने आया। इससे साफ है कि देवस्वोम बोर्ड बिना जवाबदेही के काम कर रहा है।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कम्युनिस्ट नेता और देवस्वोम बोर्ड के सदस्य मंदिरों की पवित्रता को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।
“कॉमरेड्स और कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य नास्तिक हैं। उनका असली उद्देश्य मंदिरों को नष्ट करना है। जब तक मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त नहीं किया जाएगा, ऐसी घटनाएँ होती रहेंगी।”
संभावित प्रभाव
यह मामला केवल सबरीमाला तक सीमित नहीं रह सकता। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जांच में गंभीर अनियमितताएँ सामने आती हैं तो यह पूरे त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड की विश्वसनीयता पर असर डालेगा।
अदालत ने साफ किया है कि देवस्वोम बोर्ड को जांच में सहयोग करना होगा और किसी भी स्तर पर पारदर्शिता से समझौता नहीं किया जा सकता।
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