The court upheld the order of Delhi Police sub-inspector to register an FIR for beating a dog
दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने कुत्ते की बेरहमी से पिटाई करने के मामले में FIR दर्ज करने के मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी थी।
⚖️ प्रमुख तथ्य:
- याचिकाकर्ता: रविंदर कुमार, दिल्ली पुलिस का सब-इंस्पेक्टर, वर्तमान में जाफराबाद थाने में तैनात।
- घटना की तारीख: 10 जनवरी, 2022, सुबह लगभग 10:40 बजे।
- मजिस्ट्रेट का आदेश: 13 फरवरी, 2023 को FIR दर्ज करने का निर्देश।
- पुनर्विचार याचिका खारिज करने की तिथि: 18 जुलाई, 2025।
- पुनर्विचार खारिज करने वाली अदालत: मुख्य जिला एवं सत्र न्यायाधीश (PDSJ) सुखविंदर कौर, कड़कड़डूमा न्यायालय।
📹 घटना का विवरण:
शिकायत के अनुसार, आरोपी ने अपनी बाइक गली नंबर 44, जाफराबाद में तेज़ चलाई, जिससे एक सड़क पर आराम कर रहा कुत्ता घबरा गया और उसने आरोपी को काट लिया। इसके बाद आरोपी ने डंडे से उस कुत्ते को पीटना शुरू कर दिया। बाद में, जब कुत्ता डर के मारे भाग गया और एक गली में छिप गया, तो आरोपी ने उसे वहां ढूंढ निकाला और फिर से उसे बेरहमी से तब तक पीटा जब तक वह अचेत या मृतप्राय नहीं हो गया।
इस क्रूर कृत्य का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसके आधार पर ‘अहिंसा फेलोशिप’ से जुड़ी निहारिका कश्यप और अन्य शिकायतकर्ताओं ने न्यायालय में शिकायत दी।
🧑⚖️ कोर्ट की टिप्पणी:
मुख्य जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुखविंदर कौर ने कहा:
“प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि गंभीर अपराध किए गए हैं, जिनकी जांच आवश्यक है। शिकायतकर्ताओं से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे वीडियो की प्रमाणिकता सिद्ध करें या हथियार की बरामदी करें।”
उन्होंने यह भी कहा कि:
“चूंकि आरोपी ने कुत्ते की मेडिकल रिपोर्ट को चुनौती दी है, अतः कुत्ते की पुनः जांच की आवश्यकता है कि क्या उसने कोई स्थायी चोट झेली है या नहीं।”
📚 प्रासंगिक कानूनी बिंदु:
- IPC की विभिन्न धाराएँ जैसे Section 429 (जानवर को मारना या चोट पहुंचाना), और
- Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960 के अंतर्गत संभावित अपराध।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह FIR दर्ज करने योग्य मामला है, जिसमें पुलिस द्वारा जांच की आवश्यकता है।
🐕🦺 प्रभाव और महत्व:
यह निर्णय पशु अधिकारों की सुरक्षा, पुलिस की जवाबदेही, और सोशल मीडिया द्वारा उत्पन्न जनहित याचिकाओं की वैधता की दिशा में एक अहम कदम माना जा सकता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पुलिसकर्मी होने से किसी को अपराध से छूट नहीं मिलती।
