Madhya Pradesh High Court’s strong comment on feudal attitude in judiciary: ‘Justice is not possible in an atmosphere of fear’
🧑⚖️ रिपोर्ट: हाईकोर्ट ने जिला न्यायाधीशों के साथ ‘सामंती’ व्यवहार पर उठाए सवाल, सेवा से हटाए गए न्यायाधीश की बहाली का आदेश
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में उच्च न्यायपालिका की ओर से जिला न्यायाधीशों के साथ किए जाने वाले व्यवहार की तीखी आलोचना की है।
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन ने टिप्पणी की कि यह व्यवस्था आपसी सम्मान पर नहीं, बल्कि डर, अधीनता और गरिमा के अभाव पर आधारित है — जो न्यायपालिका की आत्मा के विपरीत है।
यह टिप्पणियाँ उस मामले में आईं जिसमें एक विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति/जनजाति अदालत) को वर्ष 2015 में सेवा से हटा दिया गया था, क्योंकि उन्होंने व्यापम घोटाले से जुड़े कुछ आरोपियों को जमानत दी थी।
हालांकि उनके 28 वर्षों के सेवा रिकॉर्ड में कोई दाग नहीं था, उन्हें केवल पुलिस बयानों के आधार पर बर्खास्त कर दिया गया, बिना किसी वादी या पक्षकार की शिकायत के।
⚖️ “डर और अधीनता का वातावरण”
न्यायमूर्ति श्रीधरन ने कहा कि जिला न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को:
- रेलवे स्टेशन पर रिसीव करना होता है
- नाश्ता-जलपान परोसना होता है,
- उच्च न्यायालय में बैठक के लिए कुर्सी तक नहीं दी जाती, और यदि दी भी जाती है, तो डर के कारण वे बैठते नहीं हैं।
🗨️ “उनकी शारीरिक भाषा सिर्फ दंडवत होने से कम है”, न्यायालय ने कहा और इसे “औपनिवेशिक सड़ांध” (colonial decadence) करार दिया।
🚨 “साक्ष्य न होने पर भी सजा, ताकि हाईकोर्ट नाराज़ न हो”
फैसले में स्पष्ट किया गया कि ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश डर में निर्णय लेते हैं:
- वे जमानत नहीं देते, भले ही वह जायज़ हो
- दोषसिद्धि कर देते हैं, भले ही ठोस सबूत न हों — सिर्फ इसलिए कि हाईकोर्ट नाराज़ न हो
🗨️ “यह व्यवस्था मानो जाति व्यवस्था जैसी है — हाईकोर्ट के न्यायाधीश सवर्ण और ज़िला न्यायाधीश शूद्र या ‘ले मिज़रेबल्स’ (Les Misérables)”
✅ “ईमानदारी से दिया गया आदेश सज़ा योग्य नहीं”
न्यायालय ने दो टूक कहा:
- कोई न्यायिक आदेश तब तक दंडनीय नहीं है जब तक उसमें बेईमानी या भ्रष्टाचार सिद्ध न हो
- सिर्फ एक आदेश देने के लिए न्यायाधीश की नौकरी नहीं ली जा सकती
📝 अंतिम आदेश:
हाईकोर्ट ने:
- बर्खास्तगी को रद्द किया
- पूर्ण बहाली और सभी बकाया वेतन/ब्याज के साथ सेवा लाभ बहाल किए
- ₹5 लाख मुआवज़ा देने का आदेश दिया — मानसिक उत्पीड़न के लिए
📣 संदेश स्पष्ट है:
“अगर ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश अपने फैसलों के लिए डरे रहेंगे, तो पूरी न्याय व्यवस्था संकट में होगी।”
