अमेरिका के नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल के निदेशक केविन हैसेट ने कहा कि ट्रंप प्रशासन को सुप्रीम कोर्ट में टैरिफ केस में जीत पर “बेहद उच्च विश्वास” है। नवंबर में सुनवाई होगी। मामला राष्ट्रपति के अधिकार बनाम कांग्रेस की शक्तियों से जुड़ा है।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में ट्रंप की टैरिफ नीति पर सुनवाई नवंबर में, व्हाइट हाउस ने जीत पर जताया ‘पूर्ण विश्वास’
⚖️ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में ट्रंप की टैरिफ नीति पर बड़ी सुनवाई तय
वॉशिंगटन डी.सी.:
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए व्यापक टैरिफ (आयात शुल्क) की वैधता को लेकर मामला अब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है। कोर्ट नवंबर 2025 में इस पर सुनवाई करेगा।
इस बीच, नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल (NEC) के निदेशक केविन हैसेट ने शुक्रवार को कहा कि ट्रंप प्रशासन को इस मामले में जीत को लेकर “बेहद उच्च स्तर का विश्वास” है।
हैसेट ने कहा,
“हमें विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट हमारे पक्ष में निर्णय देगा। हमने मजबूत कानूनी आधार पर यह केस तैयार किया है। मैंने खुद तर्कों को देखा है और वे बेहद ठोस हैं। कल रात ओवल ऑफिस में राष्ट्रपति से इस पर चर्चा हुई, और हम पूरी तरह आश्वस्त हैं कि कोर्ट हमारे पक्ष में रहेगा।”
💼 ट्रंप की टैरिफ नीति पर सवाल
डोनाल्ड ट्रंप ने इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पॉवर्स एक्ट (IEEPA) के तहत “राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यापार घाटे” का हवाला देते हुए आयात शुल्क लगाया था।
इन टैरिफों का असर लगभग हर देश से आने वाले सामान पर पड़ा।
लेकिन छोटे व्यवसायों और 12 अमेरिकी राज्यों ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ याचिकाएँ दायर करते हुए आरोप लगाया कि राष्ट्रपति ने अपने अधिकारों का अतिक्रमण किया और इन निर्णयों से उनका व्यवसाय दिवालियेपन की कगार पर पहुँच गया।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट में त्वरित सुनवाई
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर को इस मामले की सुनवाई के लिए असामान्य रूप से तेज़ समयसीमा तय की।
कोर्ट नवंबर में इस पर बहस सुनेगा — जो कि सर्वोच्च न्यायालय के सामान्य मानकों के मुताबिक “बिजली की गति” मानी जा रही है।
अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, इस जल्दबाज़ी पर दोनों पक्ष सहमत हैं।
याचिकाकर्ताओं — जिनमें कई छोटे व्यापार मालिक और पारिवारिक कंपनियाँ शामिल हैं — ने भी इस त्वरित सुनवाई को स्वीकार किया है।
इनमें से एक Learning Resources नामक पारिवारिक खिलौना कंपनी भी है, जिसने ट्रंप के टैरिफ को चुनौती दी है।
📉 दो निचली अदालतों ने टैरिफ को अवैध बताया
अब तक दो संघीय अदालतों ने इन टैरिफों को “अवैध रूप से लगाए गए” बताया है।
हालाँकि, एक 7-4 के बहुमत वाले अपीलीय न्यायालय ने फिलहाल इन टैरिफों को बरकरार रखा है।
ये टैरिफ ट्रंप की पुनर्निर्वाचन के बाद शुरू की गई ट्रेड वॉर का हिस्सा हैं, जिसने
- अमेरिका के व्यापारिक साझेदारों को नाराज़ किया,
- वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता बढ़ाई,
- और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता को जन्म दिया।
🌐 “टैरिफ से शांति और समृद्धि,” ट्रंप का दावा
राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि ये टैरिफ शांति और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देंगे।
लेकिन आलोचकों का मानना है कि यह नीति संरक्षणवाद (Protectionism) को बढ़ावा देती है और मुक्त व्यापार व्यवस्था को कमजोर करती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह मुकदमा सिर्फ टैरिफ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रपति के अधिकार बनाम कांग्रेस की संवैधानिक शक्तियों के बीच एक अहम कानूनी टकराव का प्रतिनिधित्व करता है।
🧭 मामला क्यों अहम है?
यह मामला यह तय करेगा कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति को फेडरल कानून के तहत एकतरफा रूप से टैरिफ लगाने का अधिकार है या नहीं।
यदि सुप्रीम कोर्ट ट्रंप के पक्ष में फैसला देता है, तो यह आने वाले वर्षों में राष्ट्रपति पद की शक्तियों का दायरा बढ़ा सकता है।
अगर कोर्ट ने इसे अवैध ठहराया, तो यह फैसला अमेरिकी व्यापार नीति और संविधानिक शक्ति संतुलन पर दूरगामी प्रभाव डालेगा।
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