दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के दोषी नरेश सहारावत को उनकी मां के निधन पर अंतिम संस्कार करने के लिए 10 दिन की अंतरिम जमानत दी है। सहारावत को 2018 में पटियाला हाउस कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 सिख दंगा मामले के आजीवन कारावास पाए दोषी नरेश सहारावत को 10 दिन की अंतरिम जमानत दी
दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 सिख दंगा मामले में दोषी नरेश सहारावत को दी 10 दिन की अंतरिम राहत
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को 1984 के सिख विरोधी दंगों के दोषी नरेश सहारावत को उनकी मां के निधन पर अंतिम संस्कार करने के लिए 10 दिन की अंतरिम जमानत (Interim Bail) प्रदान की।
नरेश सहारावत को 2018 में पटियाला हाउस कोर्ट ने उनके सह-आरोपी यशपाल सिंह के साथ आजीवन कारावास (Life Imprisonment) की सजा सुनाई थी।
मां के निधन पर मांगी थी सजा निलंबन की राहत
सहारावत की मां का निधन 9 अक्टूबर 2025 को हुआ था। इसी आधार पर उनके वकील धर्मराज ओहलान ने 14 दिनों की अंतरिम सजा निलंबन की मांग करते हुए आवेदन दाखिल किया था ताकि वह मां के अंतिम संस्कार और अन्य रस्में पूरी कर सकें।
सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनोज जैन की खंडपीठ ने मामले की वास्तविकता (factum of death) की जांच कराई। जब यह पुष्टि हो गई कि सहारावत की मां का निधन हो चुका है, तब कोर्ट ने उन्हें राहत प्रदान की।
₹25,000 के निजी मुचलके और दो जमानतदारों के साथ जमानत मंजूर
कोर्ट ने कहा कि नरेश सहारावत को 10 दिन की अंतरिम जमानत दी जा रही है, बशर्ते वह ₹25,000 के निजी मुचलके (bail bond) और दो जमानतदारों (sureties) की शर्त पूरी करें।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह राहत केवल धार्मिक और पारिवारिक कारणों से दी जा रही है और इस दौरान वह किसी भी गवाह या सबूत को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करें।
सुनवाई में SIT का पक्ष और कोर्ट की टिप्पणी
स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) की ओर से एडवोकेट तरन्नुम चीमा पेश हुईं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि SIT को इस अंतरिम जमानत पर कोई गंभीर आपत्ति नहीं है, बशर्ते कि आरोपी की गतिविधियों पर पुलिस नजर रखे।
सुबह की सुनवाई में कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को आदेश दिया था कि वे मृत्यु प्रमाण पत्र और पारिवारिक स्थिति की जांच रिपोर्ट पेश करें।
रिपोर्ट मिलने के बाद कोर्ट ने कहा,
“चूंकि मृत्यु का तथ्य सत्यापित हो चुका है, इसलिए अदालत इस मामले में मानवीय आधार पर 10 दिन की अंतरिम राहत प्रदान करती है।”
1984 सिख दंगा मामला: एक नजर में पृष्ठभूमि
यह मामला 1 नवंबर 1984 का है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिख समुदाय पर हिंसा भड़क उठी थी।
दिल्ली के महिपालपुर क्षेत्र में हुई हिंसा के दौरान अवतार सिंह और हरदेव सिंह की हत्या कर दी गई थी।
कई वर्षों बाद, इस मामले को केंद्र सरकार द्वारा गठित स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) ने दोबारा जांचा।
SIT की जांच के आधार पर, 14 नवंबर 2018 को पटियाला हाउस कोर्ट ने नरेश सहारावत और यशपाल सिंह को दोषी ठहराया और 20 नवंबर 2018 को सजा सुनाई।
सहारावत की अपील हाईकोर्ट में लंबित
2019 में दोनों दोषियों ने अपनी सजा के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जो अभी लंबित है।
जहां नरेश सहारावत को आजीवन कारावास मिला था, वहीं सह-आरोपी यशपाल सिंह को फांसी की सजा दी गई थी।
कानूनी दृष्टिकोण से यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है
कानूनी जानकारों का कहना है कि यह फैसला बताता है कि अदालतें मानवीय पहलुओं पर विचार करती हैं, भले ही मामला गंभीर अपराध का क्यों न हो।
न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि दोषी को परिवार के अंतिम संस्कार में शामिल होने का अवसर मिले, लेकिन जमानत की अवधि सीमित रखी ताकि मुकदमे की प्रक्रिया प्रभावित न हो।
निष्कर्ष
दिल्ली हाईकोर्ट का यह आदेश न्यायपालिका के मानवीय दृष्टिकोण और संवैधानिक संतुलन दोनों को दर्शाता है।
जहां एक ओर कानून अपराध को सख्ती से देखता है, वहीं दूसरी ओर न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी आरोपी या दोषी को मानवता के मूल अधिकारों से वंचित न किया जाए।
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