दिल्ली सरकार की अधिसूचना पर आपत्ति: वरिष्ठ अधिवक्ता विकास वर्मा ने की UPSC भर्ती प्रक्रिया की मांग
Objection to Delhi government’s notification: Senior advocate Vikas Verma demands UPSC recruitment process
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास वर्मा ने दिल्ली सरकार की सेवानिवृत्त अभियोजकों की अनुबंध नियुक्ति वाली अधिसूचना को असंवैधानिक बताते हुए उसकी तत्काल वापसी और भर्ती प्रक्रिया केवल UPSC के माध्यम से करने की मांग की।
नई दिल्ली, 22 अगस्त 2025 — वरिष्ठ अधिवक्ता विकास वर्मा ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार की हालिया भर्ती अधिसूचना पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है। यह अधिसूचना, जो GNCTD के अभियोजन निदेशालय द्वारा जारी की गई है, सेवानिवृत्त अभियोजकों को अनुबंध आधार पर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त करने के लिए आवेदन आमंत्रित करती है।
वर्मा ने इस अधिसूचना को असंवैधानिक, मनमानी और भेदभावपूर्ण बताते हुए मुख्य सचिव और गृह सचिव (दिल्ली सरकार), UPSC सचिव, और अभियोजन निदेशक को औपचारिक प्रतिनिधित्व सौंपा।
वर्मा की आपत्तियाँ
- अधिसूचना सेवानिवृत्त अधिकारियों को “बैकडोर एंट्री” देने का साधन है, जिससे UPSC या अन्य वैधानिक संस्थाओं द्वारा पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया दरकिनार की जा रही है।
- सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसलों State of Karnataka v. Umadevi (2006) और Renu v. District & Sessions Judge (2014) का हवाला देते हुए कहा कि सार्वजनिक पदों के लिए प्रतिस्पर्धी भर्ती अनिवार्य है।
- अधिसूचना में विज्ञापित पद स्वीकृत संख्या से अधिक हैं, जो जुलाई 2025 में Delhi Govt. Affidavit (Court on its Own Motion v. State of NCT Delhi) में दर्ज आँकड़ों के विपरीत है।
संवैधानिक व कानूनी तर्क
- अधिसूचना अनुच्छेद 14, 16 और 19(1)(g) का उल्लंघन करती है — समानता, सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर और पेशा चुनने का अधिकार।
- आरक्षण नीति की अनदेखी करते हुए SC, ST, OBC उम्मीदवारों को बाहर कर दिया गया है।
- सेवानिवृत्त अभियोजकों की पुनर्नियुक्ति से राज्य पर अनावश्यक वित्तीय बोझ बढ़ेगा, जबकि नियमित UPSC भर्ती से संस्थागत निरंतरता और दक्षता बनी रहेगी।
- बार काउंसिल ऑफ दिल्ली सहित हितधारकों से परामर्श न करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है।
व्यापक प्रभाव
वर्मा ने चेतावनी दी कि यदि ऐसे मनमाने नियुक्ति आदेश जारी होते रहे तो यह अन्य विभागों में भी मनमानी भर्ती का उदाहरण बन जाएगा। उन्होंने कहा कि यह कदम जनहित, पारदर्शिता और युवा वकीलों के अवसरों के खिलाफ है।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय State of Punjab v. Davinder Singh (2024) का हवाला देते हुए सरकार से सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) के विकसित ढांचे को अपनाने का आग्रह किया।
निष्कर्ष
- अधिसूचना की तत्काल वापसी
- इसके जारी होने की औपचारिक जांच
- और भविष्य में सभी भर्तियाँ केवल UPSC या विधिक संस्थाओं के माध्यम से योग्यता आधारित और समावेशी प्रक्रिया से हों।
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