सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में भूस्खलन व बाढ़ से हुई तबाही पर चिंता जताई। अदालत ने कहा कि यह मामला केवल हिमाचल तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र को कवर करेगा। आदेश 24 सितंबर को दिए जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने हिमालयी क्षेत्र में आपदाओं पर जताई चिंता, दायरा बढ़ाकर पूरी श्रृंखला पर होगी सुनवाई
नई दिल्ली, सोमवार। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हिमालयी राज्यों में लगातार बढ़ रही प्राकृतिक आपदाओं पर गहरी चिंता जताई। हाल ही में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में भूस्खलन और मूसलाधार बारिश से हुई भारी तबाही को देखते हुए अदालत ने कहा कि यह समस्या केवल हिमाचल तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी हिमालयी श्रृंखला इससे प्रभावित है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि यह बार-बार की घटनाएँ नहीं, बल्कि “बहुत ही हिंसक और गंभीर” स्थिति है। अदालत ने साफ किया कि अब यह सुओ मोटू जनहित याचिका केवल हिमाचल तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र में पारिस्थितिक असंतुलन और विकास संबंधी चुनौतियों को कवर करेगी। आदेश 24 सितंबर को पारित किए जाएंगे।
इससे पहले 28 जुलाई को न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा था कि यदि हालात नहीं बदले तो “हिमाचल हवा में गायब हो सकता है”। उसी समय शीर्ष अदालत ने मामले का सुओ मोटू संज्ञान लिया था।
अदालत ने पाया था कि राज्य में अति-विकास, चार-लेन सड़कें, जलविद्युत परियोजनाएं, वनों की कटाई और बहुमंज़िला इमारतें विनाश का प्रमुख कारण हैं। साथ ही, पर्यटन पर अत्यधिक निर्भरता और उसका अनियंत्रित विस्तार पर्यावरण पर भारी दबाव डाल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी विकास परियोजना से पहले भूवैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और स्थानीय निवासियों की राय लेना आवश्यक है। साथ ही, केंद्र सरकार की यह ज़िम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि हिमालयी राज्यों में पारिस्थितिक असंतुलन और खराब न हो।
अदालत ने राज्यों से जवाब मांगा है कि उनके पास इस संकट से निपटने की कोई कार्ययोजना है या नहीं और भविष्य के लिए वे क्या कदम उठाने का प्रस्ताव रखते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन, वनों की अंधाधुंध कटाई और अनियोजित निर्माण ने हिमालयी क्षेत्र को बेहद नाजुक बना दिया है। बाढ़, भूस्खलन और हिमस्खलन जैसी आपदाएँ यहां अक्सर जान और माल का भारी नुकसान करती रही हैं, जैसा कि 2013, 2021, 2023 और 2025 में देखा गया।
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