सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को चेताया, आधार को नागरिकता का सबूत मानना गलत

अदालत ने दो टूक कहा कि “लोकतंत्र को कमजोर करने वाले फर्जी मतदाताओं को बख्शा नहीं जाएगा और आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।”


👉 सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को चेताया कि आधार को नागरिकता का सबूत मानना गलत


सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को चेताया कि आधार को नागरिकता का सबूत मानना गलत है। अदालत ने कहा, आधार सिर्फ पहचान पत्र है, न कि मतदाता सूची या नागरिकता का प्रमाण।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राजनीतिक दलों को कड़ी फटकार लगाते हुए साफ कहा कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण पत्र मानने की कोशिश स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार को पहचान पत्र के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इसे अकेले नागरिकता साबित करने के लिए नहीं माना जा सकता।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि अदालत न तो आधार अधिनियम, 2016 की धारा 9 से परे जा सकती है और न ही पुट्टस्वामी (2018) मामले के फैसले से आगे। दोनों ही स्थितियों में स्पष्ट किया गया है कि आधार न तो नागरिकता प्रदान करता है और न ही किसी व्यक्ति को निवास का अधिकार देता है।

दरअसल, बिहार में मतदाता सूची से करीब 65 लाख नाम हटाए जाने के बाद राजद समेत कुछ दलों ने आधार को मतदाता पंजीकरण का अंतिम प्रमाण बनाने की मांग की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख लहजे में सवाल उठाया—“आधार पर इतना जोर क्यों?”

चुनाव आयोग ने कोर्ट को जानकारी दी कि बिहार के कई जिलों में आधार सैचुरेशन 140% से अधिक है, जो बड़े पैमाने पर फर्जी नामांकन का संकेत देता है। वहीं, केंद्र सरकार ने कहा कि कई राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या शरणार्थियों ने भी धोखाधड़ी से आधार कार्ड बनवा लिए हैं।

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सुप्रीम कोर्ट का संदेश

  • राजनीतिक दलों को कहा गया कि वे जमीनी स्तर पर वास्तविक मतदाताओं की मदद करें,
    जैसे कि बूथ लेवल एजेंटों के जरिए दावे-आपत्तियां दाखिल कराना।
  • शॉर्टकट” खोजकर मतदाता सूची को कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
  • अदालत ने दो टूक कहा: आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
  • फर्जी मतदाताओं को लोकतंत्र को कमजोर करने का मौका नहीं दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को सलाह दी कि वे असली मतदाताओं की मदद के लिए जमीनी स्तर पर बूथ लेवल एजेंटों के जरिए दावे-आपत्तियां दाखिल करवाएं। अदालत ने दो टूक कहा कि “लोकतंत्र को कमजोर करने वाले फर्जी मतदाताओं को बख्शा नहीं जाएगा और आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।”

👉 कुल मिलाकर, यह फैसला मतदाता पहचान और नागरिकता के बीच कानूनी स्पष्टता लाता है। अदालत ने यह सुनिश्चित किया है कि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और वैधता बनी रहे, जबकि आधार की भूमिका को उसकी कानूनी सीमा तक ही रखा जाए।

यह फैसला Association for Democratic Reforms (ADR) बनाम ECI (2025) वाले केस की सुनवाई के संदर्भ में आया है और आगे के राजनीतिक व कानूनी असर क्या हो सकते हैं?

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