सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘प्रक्रिया न्याय पर हावी नहीं हो सकती’। पटना हाईकोर्ट का आदेश पलटते हुए रेप और POCSO केस में ट्रायल कोर्ट की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा बहाल की।
सुप्रीम कोर्ट: ‘प्रक्रिया न्याय पर हावी नहीं हो सकती’, पटना हाईकोर्ट का आदेश पलटा, रेप और POCSO केस में दोषसिद्धि बहाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया न्याय पर नियंत्रण का साधन नहीं बन सकती और जब अभियोजन का मामला सुसंगत और विश्वसनीय हो, तो केवल प्रक्रियागत त्रुटियों के आधार पर दोषियों को बरी करना आपराधिक न्याय व्यवस्था की विफलता है।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने पटना हाईकोर्ट द्वारा अभियुक्तों की बरी करने का आदेश निरस्त करते हुए ट्रायल कोर्ट का दोषसिद्धि और सजा का आदेश बहाल किया।
कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां
- “प्रक्रिया का उद्देश्य न्याय में सहायक होना है, न कि उसे विफल करना।”
- “संदेह से परे” सिद्धांत का गलत प्रयोग वास्तविक दोषियों को कानून के शिकंजे से बाहर निकाल देता है, जो समाज की सुरक्षा भावना को चोट पहुंचाता है।
- ग्रामीण इलाकों में दस्तावेजों में आयु संबंधी मामूली विसंगतियां आम हैं; अदालतों को संवेदनशील रहकर सामाजिक वास्तविकताओं के अनुसार कानून का उद्देश्य सुनिश्चित करना चाहिए।
प्रकरण की पृष्ठभूमि
- पीड़िता, जो उस समय लगभग 12-13 वर्ष की थी, 2016 में गर्भवती पाई गई। पूछताछ में उसने अभियुक्तों पर बलात्कार का आरोप लगाया।
- ट्रायल कोर्ट ने दोनों अभियुक्तों को IPC की धारा 376(2) और POCSO अधिनियम की धाराओं 4 और 6 के तहत दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास व अर्थदंड से दंडित किया।
- पटना हाईकोर्ट ने प्रक्रियागत कमियों (विशेषकर CrPC की धारा 223 के तहत संयुक्त ट्रायल) और गवाहों की गवाही में कथित असंगतियों के आधार पर दोषसिद्धि रद्द कर दी।
- अपील में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के बयानों और चिकित्सकीय साक्ष्यों में पर्याप्त सामंजस्य था, और अभियुक्तों को कोई वास्तविक पूर्वाग्रह या न्याय का हनन नहीं हुआ।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष
- अभियुक्तों की बरी करना गलत था; ट्रायल कोर्ट का फैसला सही और कानूनी रूप से उचित था।
- मात्र प्रक्रियागत त्रुटि को दोषमुक्ति का आधार नहीं बनाया जा सकता, जब अभियोजन का मामला सशक्त हो।
- कोर्ट ने कहा, “हर बार जब असली दोषी बरी होता है, यह आपराधिक न्याय व्यवस्था पर धब्बा है।”
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