सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोन न चुकाने पर केवल सिविल देनदारी बनती है, इसे धोखाधड़ी (धारा 405 IPC) नहीं माना जा सकता। Hero Fincorp मामले में हाईकोर्ट का आदेश रद्द।
सुप्रीम कोर्ट: लोन न चुकाने पर बनती है सिविल देनदारी, धोखाधड़ी नहीं
Supreme Court: Non-payment of loan is a civil liability, not fraud
सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कहा कि ऋणदाता और उधारकर्ता के बीच संबंध (debtor-creditor relationship) केवल सिविल देनदारी को जन्म देता है। यदि तय शर्तों के अनुसार रकम वापस नहीं की जाती, तो यह सामान्यत: धारा 405 IPC (Criminal Breach of Trust) के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
जस्टिस दिपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि “धारा 405 IPC आईपीसी का मूल विचार यह है कि सौंपा गया धन अस्थायी रूप से भी आरोपी की निजी संपत्ति नहीं बन जाता। अतः लोन ट्रांजैक्शन, जहां राशि उपयोग के लिए दी जाती है और बाद में लौटाई जानी होती है, सामान्यतः धोखाधड़ी के दायरे में नहीं आता।”
मामला
अपीलकर्ता सुनील शर्मा, निदेशक (Benlon India Ltd.), ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें Hero Fincorp Ltd. की शिकायत पर कार्यवाही आगे बढ़ाने का निर्देश दिया गया था। कंपनी ने मशीनरी खरीद के लिए लोन दिया था, लेकिन आग लगने से ₹180 करोड़ की मशीनरी जलकर नष्ट हो गई। बाद में मशीनरी लोन को कॉरपोरेट लोन में बदल दिया गया।
Hero ने क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट का आरोप लगाया, जिसे EOW की जांच रिपोर्ट ने खारिज किया था। निचली अदालत ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार किया, लेकिन हाईकोर्ट ने Hero के पक्ष में आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि:
- लोन ट्रांजैक्शन में स्वामित्व उधारकर्ता को स्थानांतरित हो जाता है, इसलिए उसे रकम का अस्थायी उपयोग करने का अधिकार होता है।
- धोखाधड़ी या ग़ैरक़ानूनी हेराफेरी के आरोप तथ्यों पर आधारित नहीं थे।
- हाईकोर्ट ने Lalita Kumari बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2014) फैसले की सही व्याख्या नहीं की।
- इस मामले में आपराधिक कार्यवाही क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
अदालत ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और कार्यवाही को खारिज कर दिया।
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